
मेरठ। मोहर्रम के जलूस के तीसरे दिन शुक्रवार को जुमे की नमाज के पहले जैदी फार्म मस्जिद में एक मजलिश का आयोजन किया गया। इस मजलिश को खिताब करने वाले मोहम्मद जेड़एस सिराज ने देश में हिन्दू-मुस्लिम की एकता और इसके अलावा हिन्दुस्तान के पुराने रीति-रिवाजों को बयां किया। उन्होंने कहा कि हिन्दुस्तान के इतिहास में अलग-अलग मजहबों के मानने वालों के बीच दोस्ताना और बिरादरी मोहब्बत शुरू से ही मौजूद है। रीति-रिवाजों और तीज-त्योहारों में हिन्दू-मुस्लिम हमेशा मिलकर रहे हैं और उन्होंने मिलकर इनका आनन्द लिया है। इसके अलावा एक-दूसरी कौमों के लोग समय-समय पर जरूरत पड़ने पर साथ-साथ खड़े हुए हैं। इसकी मिसाल हमारी आजादी की लड़ाई में उनकी मिली-जुली हिस्सेदारी है। उन्होंने कहा कि हिन्दुस्तान की रग-रग में गंगा-जमुरी तहजीब हर रही है।
एक जैसी हवा ली और एक जैसा पानी पिया
हर हिन्दुस्तानी ने एक जैसी हवा ली है, एक जैसा पानी पिया है और एक ही उपजा हुआ अन्न खाया है। भले ही उनके मजहबी विचार अलग-अलग हो। 1857 की आजादी की लड़ाई और उसके बाद के राष्ट्रीय आंदोलन में हिन्दू-मुस्लिम ने कंधे से कंधा मिलाकर विदेशी ताकत का मुकाबला किया और सीने पर गोलियां खाई। परन्तु किन्हीं कारणोंवश आजादी मिली पर दो टुकड़ों में और वह भी हिन्दू-मुस्लिमों के खून से बदरंग होने के बाद।
मुल्क की खुशहाली में मुल्कवासियों को संतो और सूफियों ने हमेशा भाईचारे का पाठ पढाया है और मुल्क की खुशहाली में ही मुल्कवासियों की खुशहाली है। ऐसा जोर दिया है। अभी भी मुल्क के कोने-कोने में हजारों ऐसी घटनाएं होती है और ऐसी परंपराएं हैं जिनमें भाईचारा और आपसी प्यार भरा हुआ है। इसलिए हर मुल्कवासी का टारगेट होना चाहिए कि हम सब मिलकर रहे, प्यार से रहे। जिससे कि अमन कायम रहे। हम सब खुशहाल हों और हमारा मुल्क दुनिया में सबसे अच्छा मुल्क साबित हो। यह सब गंगा-जमुनी तहजीब को मन से और हर काम में अपनाने से ही होगा।
Published on:
13 Sept 2019 12:01 pm
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