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उत्तरी भारत के प्रसिद्ध तीर्थाें में शुमार है हस्तिनापुर का जैन तीर्थ स्थल

मेरठ के हस्तिनापुर में विद्यमान है भगवान महावीर की दस फुट ऊंची खड़गासन प्रतिमा और नवग्रह शांति जिनंदिर

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मेरठ। मेरठ जनपद में स्थित हस्तिनापुर उत्तरी भारत के प्रमुख जैन धर्म के तीर्थस्थलों में से एक है। कमल मंदिन में विराजमान कल्पवृक्ष भगवान महावीर की अतिशयकारी, मनोहारी एवं अवगाहना प्रमाण सवा दस फुट ऊंची खड़गासन प्रतिमा और नवग्रह शांति जिनंदिर में विराजमान भगवन्तों की नौ प्रतिमाओं के दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालुगण आते हैं। इसके अलावा हस्तिनापुर स्थित जम्बूद्वीप तीर्थ में विराजमान 31-31 फुट उतुंग भगवान शांतिनाथ, कुंथनाथ और अरहनाथ की विशाल खड़गासन प्रतिमाएं जैन धर्मावलम्बियों के बीच आकर्षण का केंद्र हैं। डा. जीवन प्रकाश जैन के अनुसार तीर्थ जैन भूमियों के इतिहास में यह प्रथम अवसर हस्तिनापुर को प्राप्त है कि जब यहां पर भगवान शांतिनाथ-कुंथुनाथ -अरहनाथ जैसे तीन-तीन पद के धारी महान तीर्थकरों की साक्षात जन्मभूमि जम्बूद्वीप स्थल पर ग्रेनाइट पाषाण की 31 फुट उतुंग तीन विशाल प्रतिमाएं राष्टीय स्तर के पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के साथ विराजमान की गई।

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जैन तीर्थ में हस्तिनापुर का महत्व

जैन तीर्थस्थलों में हस्तिनापुर का अपना अलग ही महत्व है। भगवान ऋषभदेव के प्रथम पुत्र, प्रथम चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा। राजा भरत की राजधानी हस्तिानपुर थी। इसके अलावा महाभारत से भी हस्तिनापुर का इतिहास जुड़ा हुआ है। जैन धर्म के 24 तीर्थकरों में से 16-17-18 वें तीन तीर्थकर श्री शांतिनाथ, कुुंथुनाथ और अरहनाथ का जन्म भी हस्तिनापुर में हुआ था। जैन धर्म के अनुसार करोड़ों वर्ष पूर्व यहां पर इन तीर्थकरों के चार-चार कल्याणक हुए थे और तीर्थंकर, चक्रवर्ती, कामदेव इन तीन पदों के धारक। इन तीनों महापुरूषों ने हस्तिनापुर को राजधानी बनाकर यहां से छह खंड का राज्य संचालित किया था। जैन धर्मावंबियों के अनुसार दिल्ली और हस्तिनापुर तब एक ही माना जाता था। जवाहर लाल नेहरू ने भी अपनी किताब डिस्कवरी आफ इंडिया के पृष्ठ 107 पर इसका उल्लेख किया है। इससे स्पष्ट ज्ञात होता है कि आज जिसे हम दिल्ली के नाम से जानते हैं वह कभी हस्तिनापुर एवं इंद्रप्रस्थ कहलाता था। अतः दिल्ली और हस्तिनापुर को ही एक दूसरे के पूरक ही समझा जाता हैै। जम्बूद्वीप परिसर में ओम मंदिर , भगवान वासुुपूज्य मंदिर, भगवान शांतिनाथ मंदिर के अलावा विद्यमान बीस तीर्थंकर मंदिर, सहस्त्रकूट मंदिर, भगवान ऋषभदेव मंदिर के दर्शन कर जैन धर्म के लोग अपने आप को धन्य मानते हैं।

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