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1978 में हुआ था नहर का शिलान्यास बता दें कि जनपद चौगामा नहर से हजारों हैक्टेयर भूमि को सींचने का सपना किसान नेताओं ने देखा था और लम्बे संघर्ष के बाद इस नहर की नींव रखी गयी थी। दरअसल, सितंबर, 1978 में तत्कालीन सिंचाई मंत्री ठाकुर बलबीर सिंह ने बुढ़ाना में इस नहर का शिलान्यास किया था। उस समय हिंडन व कृष्णा नदी में पंप सेट से पानी उठाकर इस नहर में पानी डालने का प्रावधान था। लेकिन योजना प्रवान नहीं चढ पाई। उस समय इस परियोजना पर 6.42 करोड़ रुपये खर्च होने थे। यह भी पढ़ें
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, पुलिस ने रंगे हाथ दबोचा तीन वर्ष तक इसका निर्माण कार्य चला। लेकिन नतीजा नहीं निकल पाया और इसके बाद काम ठप हो गया। एक बार फिर बागपत के किसानों ने 1965 में चौगामा नहर के निर्माण की मांग रखी। आंदोलन लम्बा चला और 30 जून 1985 को कांग्रेस नेता सत्यप्रकाश राणा के प्रयास से इस नहर परियोजना को दोबारा स्वीकृति मिली और तत्कालीन सिंचाई मंत्री वीर बहादुर सिंह ने दाहा में सभा कर नहर का निर्माण कार्य शुरू कराने की घोषणा की। हजारों हैक्टेयर भूमि और किसान पानी को तरस रहे इस योजना को हिंडन व कृष्णा नदियों से हटाकर कल्लरपुर रजबाहे के माध्यम से इसमें पानी देने का प्रावधान रखा गया और इस 33.36 करोड़ रुपये खर्च करने का बजट दिया गया। परियोजना पर पैसा भी खर्च किया जाता रहा नहर का निर्माण भी चला लेकिन पैसा खत्म होते ही परियोजना एक बार फिर खटाई में चली गयी और आज तक यह नहर पानी के लिए तरस रही है। वहीं बिना पानी के हजारों हैक्टेयर भूमि ही नहीं किसान भी पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं। यहां जल स्तर गहराता जा रहा है। किसान मसीहा का खिताब लेने वाले और उनके नाम पर राजनीति करने वाले नेता भी इन किसानों को इस नहर का लाभ नहीं दिला पाये। आलम यह है कि बागपत की यह चैगामा नहर एक बूंद पानी के लिए पिछले 40 साल से आज तरस रही है और इसकी प्यास बुझाने वाला कोई जल पुरूष आज तक सामने नहीं आया है।
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