
मुस्लिम समाज में परिवर्तन के लिए इस धार्मिक नेता ने दी ये सलाह, इस पर अमल करने को कहा
मेरठ। अधिकतर मुस्लिम बिरादरियों में सदैव यह सवाल उठता रहा है कि इस्लाम की रिवायत व दिनचर्या के लिए एक तार्किक और अमली दृष्टिकोण चुनने की आवश्यकता है या यह संभव है भी कि नहीं। इस प्रश्न पर इस्लामी विचारकों ने अलग-अलग विचार रखे हैं। यह कहना है मोहर्रम कमेटी के अली हैदर रिजवी का। उन्होंने यह बातें जैदी फार्म में आयोजित एक जलसे में कही। उन्होंने कहा कि जैसे परम्परागत शरई नियम पर अमल करने वाले अधिकतर मुसलमान इस बात के कायल हैं कि कभी भी इसमें सुधार नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह इस्लाम को एक कामिल और मुकम्मल जीवन प्रणाली मानते हैं, जिसमें कोई परिवर्तन संभव नहीं, पर सामान्य लोगों का एक तबका इनका पुरजोर हामी है। मुस्लिम सुधार केवल जरूरी नहीं है, बल्कि यह प्राकृतिक तौर पर शुरू होना प्रारंभ भी हो चुका है।
अधिकतर परिवर्तन समाज की अच्छार्इ के लिए
यह स्वीकार करना और मानना अब हमारे ऊपर है कि अधिकतर परिवर्तन समाज की अच्छाई के लिए हैं। मुस्लिम समाज में ये जो सुधार हुए हैं। वह आंशिक तौर पर पश्चिमी सभ्यता व संस्कृति के प्रभाव के कारण हैं। समकालीन शिक्षा और आजीविका में बेहतरी की मुसलमानों की जरूरत का दूसरे समाज के मानकों को अपनाने में अधिक दखल है। इसमें सामाजिक, शैक्षिक और कानूनी सुधार भी शामिल हैं। मुसलमानों के बीच इन सुधारों के मिले-जुले फायदेमन्द परिणाम प्राप्त हुए हैं। उन्होंने कहा कि जबकि ये सब शरीयत पर आधारित नहीं हैं। दुनिया भर में इस्लाम के प्रचार, प्रसार और प्रकाशन के लिए शरीअत को मानवाधिकार के वैश्विक घोषणा के अनुसार होना आवश्यक है।
मानवीय क्षमताआें को कम करने वाली शिक्षा से बचें
अली हैदर रिजवी ने जलसे को संबोधित करते हुए कहा कि हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि जो शिक्षा व्यक्तिगत विकास, संसाधनों की प्राप्ति, स्वतंत्रता और विभिन्न समूहों के साथ सदभाव और खुशियों की परम प्राप्ति में सहायक हैं केवल वहीं इस्लाम के वास्तविक उद्देश्य और उसकी रूह की नुमाइंदगी करती है। इसके विपरीत जो इस्लामी शिक्षाएं मानवीय क्षमताओं के कम करने, अविश्वसनीयता, नाखुशगवारी और बराबरी की क्षमताओं में कमी पैदा करने वाली हैं वह झूठ हैं और इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि कितना मशहूर आलिम उसका प्रकाशन कर रहा है। अमली सुधारों से कई लाभ सामने आएंगे। अगर मुसलमान कुरान और हदीस की शिक्षाओं की फिर से व्याख्या इस अंदाज में करें तो इस दौर में मुस्लिम समाज मजबूत और जागरूक बनेगा और दूसरों को भी बनाएंगे। अगर इस प्रकार के सुधार को हकीकत का रूप दे दिया जाए, तो मुसलमान अपने बुनियादी मूल्यों से अलग हुए बिना खुद को विकास के रास्ते पर लाने के लिए काबिल हो जाएंगे।
Published on:
14 Oct 2018 06:23 pm
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