
राजनीति के वेंटिलेटर से उठकर 2019 की दौड़ में यह पार्टी, वेस्ट यूपी में अब जमेगा 'मजगर' का सिक्का
मेरठ। राजनीति के वेंटिलेटर पर पड़ी रालोद को कैराना में सपा और बसपा की बैसाखी से मिली जीत की दवा ने फिर से खड़ा कर दिया है। रालोद और चौधरी अजित सिंह को लगता है कि अब उनका मुस्लिम-जाट वोट बैंक खाते में वापस आ गया है। हालांकि उनकी ओर से महागठबंधन को परवान चढ़ाने के लिए बढ़-चढ़कर दावे किये जा रहे हैं, लेकिन समाजवादी पार्टी व राष्ट्रीय लोकदल के अलावा इस महागठबंधन का शोर मचाने वाले अन्य राजनीतिक दलों में इसके बारे में कोई सुगबुगाहट दिखाई नहीं दे रही है।
सपा के बाद सबसे बड़ा दल रालोद
गठबंधन के ढोल बजाने वालों में सपा के अलावा प्रदेश में रालोद सबसे बड़ा दल माना जा रहा है। गठजोड़ की आड़ में पाला बदलने के माहिर अजित सिंह केवल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों में अपना असर रखते हैं। पिछले चुनावों पर नजर डाले तो रालोद कभी 3.80 फीसद वोट से ज्यादा नहीं बटोर सका। 2002 में भाजपा और 2012 में कांग्रेस के साथ गठजोड़ करके लड़े रालोद को मुजफ्फरनगर दंगे के बाद जाट वोटों को सहेजना भारी पड़ गया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में तो अजित सिंह और उनके पुत्र जयंत चैधरी भी अपनी सीट भी नहीं बचा पाए थे। जाट मुस्लिम समीकरण ध्वस्त होने के बाद रालोद से गठजोड़ को चुनावी लाभ के बजाय नुकसान का सौदा साबित हुआ। वेस्ट यूपी में छपरौली को रालोद का सबसे सुरक्षित किला माना जाता है। यहां आज तक रालोद का कोई भी प्रत्याशी विधानसभा का चुनाव नहीं हारा था। पहले पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का जलवा कायम रहा। उनके बाद लोकसभा में जाने के बाद 1977 में यहां से नरेंद्र सिंह कई बार विधायक चुने गए। चौधरी चरण सिंह की बेटी सरोज वर्मा और रालोद मुखिया अजित सिंह भी यहां से विधायक चुने गए। 2014 के बाद से रालोद का अस्तित्व भी मझधर में ही रहा है। रालोद के खोये हुए वजूद व अपने अस्तित्व को तलाश रहे रालोद के मुखिया अब स्थान परिवर्तन की राह तलाश रहे थे। इसी दौरान कैराना उपचुनाव ने उनके लिए संजीवनी का काम किया।
इतनी आसान भी नहीं है मंजिल
भाजपा पर निशाना लगाकर 2013 के जख्मों को भुलाकर उन्होंने भले ही जाटों और मुस्लिमों का दिल जीत लिया हो। लेकिन उन्हें अभी सोचना होगा कि राह इतनी आसान नहीं है। एक वह जमाना भी था कि जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद की तूती बोलती थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान नेता के दम पर पहचान चौधरी चरण सिंह के द्वारा बनायी गयी थी। जिसके चलते वह प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित देश के प्रधानमंत्री तक बने थे। उनके द्वारा दी गयी राजनीति की विरासत रूपी फसल को उनके पुत्र चौधरी अजित सिंह के द्वारा काफी समय से काटा गया। जिसके चलते वह केंद्रीय मंत्री तक बने।
2019 में 'मजगर'
रालोद के राष्टीय महासचिव डा. मैराजुद्दीन कहते हैं कि 2019 में हम मजगर की एकजुटता पर ध्यान दे रहे हैं। 'मजगर' मतलब मुस्लिम, जाट, गुर्जर, राजपूत। वह कहते है कि पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने पूरे उप्र में 'मजगर' को एकजुट किया था, जो अन्य दलों पर बहुत भारी पड़ा था। इस बार पश्चिम उप्र सहित पूरे यूपी में 'मजगर' के फार्मूले पर ही चुनाव लड़ा जाएगा।
Published on:
20 Jun 2018 03:02 pm
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