मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां से मां किसी को भी खाली हाथ नहीं लौटाने देती हैं। यहां पहले जंगल हुआ करता था। जंगल के पास ही ओरंग सहापुर डिग्गी की शमशान भूमि हुआ करती थी। जिसके बीच में देवी की मूर्ति रखी हुई थी। मूर्ति कहां से आई और किसने स्थापित की यह आज भी रहस्य बना हुआ है। इसलिए इसे मरघट वाली मां का मंदिर भी कहते हैं।
मंदिर की खासियत है कि यहां भक्तों को व्रत के नौ दिन मां के नौ रूपों के दर्शन कराए जाते हैं। बुधवार को मां हरे रंग का चोला, गुरुवार को पीला, शुक्र को जामुनी, शनिवार को नीला या काला, रविवार को लाल रंग और सोमवार को सफेद और मंगलवार को मां को नारंगी रंग का चोला पहनाया जाता है। मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां कोई भी भक्त कभी खाली नहीं जाता है। मंदिर के बारे में लोगों की ऐसी भी मान्यता है कि यहां अपनी मुरादें लिखने से मां उनकी मुरादें सुनती हैं। इसलिए लोग यहां दीवारों पर अपनी मुरादें भी लिखते हैं।
नवरात्र के नौ दिनों में सुबह मां का श्रृंगार किया जाता है और हवन किया जाता है। रात्रि में भी विशेष पूजा अर्चना व दर्शन होते हैं। मंदिर में आने वाले श्रद्धालुगण बताते हैं कि मां की महिमा निराली है वे अपने भक्तों की सभी मुरादें पूरी करती है।
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