
450 पुरानी श्मशान महाकाली सिद्धपीठ काली मंदिर में पूजा करने आते थे अंग्रेज
मेरठ सदर सिद्धपीठ काली मंदिर को श्मशान महाकाली भी बोला जाता है। आसपास के रहने वाले बुजुर्ग लोगों में बहुत ही कम ऐसे बचे हैं जो मंदिर के इतिहास के बारे में जानते हैं।
लेकिन मंदिर से कुछ दूर रहने वाली अनुपमा त्रिवेदी बताती हैं कि मेरठ में सिद्धपीठ महाकाली मंदिर को श्मशान महाकाली भी कहा जाता था।
उन्होंने बताया कि मंदिर में बहुत पहले न नवरात्र में नवमी के दिन बली देने की प्रथा थी। 85 वर्षीय अनुपमा कहती हैं हालांकि उन्होंने यह कभी देखा तो नहीं।
अंग्रेज भी आते थे मंदिर में
महाकाली मंदिर की पुजारिन श्रुति बनर्जी बताती हैं कि इस मंदिर को उनके पूर्वजों ने स्थापित किया था। चार सौ 50 साल पहले जब यह मंदिर स्थापित किया गया तो यहां पर श्मशान घाट था।
उसी जगह पर मां काली की मूर्ति कलकत्ता से लाकर स्थापित की गई थी। इसी कारण से सिद्धपीठ मां काली के मंदिर को पहले श्मशान महाकाली बोला जाता था।
मंदिर में पूरी होती है मनोकामना
महाकाली मंदिर में सभी भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। श्रुति बैनर्जी ने बताया कि भक्तों की मां के प्रति श्रद्धा देखते हुए हमारे पूर्वजों ने सिद्धपीठ महाकाली मंदिर की स्थापना की थी। श्रुति बताती हैं कि यहां केवल शहरी नहीं बल्कि बाहरी शहरों से भक्त मां के दर्शन करने आते हैं।
मंदिर में जिसने पूरे विधि विधान से मां का गुणगान किया है और मां की महाआरती में भाग लिया। उसकी मनोकामना महाकाली पूरी करती है। श्रुति ने बताया कि मंदिर में लोग चुनरी व नारियल चढ़ाते हैं।
यहां से हजारों के बिगड़े काम बने हैं और हजारों को पुत्र की प्राप्तिए शिक्षा के क्षेत्र में सफलता और करियर व रोजगार में भी सफलता मिली है।
दुर्गा मां के नवरात्रों में मंदिर में मां की सुबह आरती व श्रृंगार किया जाता है। इसके साथ ही रोजना रात दस बजे नगाड़ों के साथ महाकाली की स्पेशल आरती की जाती है।
इस आरती का अपना विशेष महत्व माना जाता है। इसके साथ ही छठी पर जागरण और सप्तमी, अष्टमी और नवमी पर मंगल आरती व भंडारा किया जाता है।
Published on:
29 Mar 2023 08:18 pm
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