
मायावती आैर अखिलेश के एेलान से पश्चिम उप्र में टूट सकता है सपा-रालोद गठबंधन, देखें वीडियो
केपी त्रिपाठी, मेरठ। याद करिए आज से करीब आठ महीने पहले का पश्चिम उप्र में वो राजनैतिक परिदृश्य। जिसमें रालोद और सपा सत्तारूढ़ भाजपा को उपचुनाव में धूल चटाने के लिए आपस में गलबहियां करते हुए कैराना की गलियों में वोटरों के सामने हाथ बांधे खड़े थे। दोनों ही दलों, यहां तक कि पीछे से बसपा भी इसी उम्मीद से चुनाव में साथ दे रही थी कि एक बार भाजपा को मुंह की खिला दे। कैराना चुनाव गठबंधन के लिए किसी राजनैतिक लिटमेस टेस्ट से कम नहीं था। इस राजनैतिक लिटमेस टेस्ट में रालोद की तबस्सुम हसन चुनाव तो जीत गई, लेकिन यह जीत सपा और बसपा के लिए संजीवनी बन गई। जो कि महागठबंधन के ऐलान के रूप में प्रदेश की जनता के सामने आई।
सपा-बसपा दोनों ने अपनी-अपनी सीटों का बंटवारा कर मात्र दो सीटें अन्य दलों के लिए छोड़ी। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि इस महागठबंधन के बोझ तले तो रालोद के मुखिया अजित सिंह की राजनैतिक महत्वकांक्षा को दबा दिया गया। जाहिर सी बात है, रालोद दो सीटों में मानने वाली नहीं। रालोद कहीं न कहीं पश्चिम उप्र में पांच सीटों की मांग तो करेगी ही। अगर रालोद की शर्तेंं सपा अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव नहीं मानते तो ऐसे में कैराना मे हुआ सपा-रालोद गठबंधन टूटने के कगार पर पहुंच सकता है। पूर्व छात्र नेता और रालोद महासचिव डा. राजकुमार सांगवान कहते हैं कि सपा-बसपा का गठबंधन बेमेल हैै। उनका कहना है कि प्रदेश के और देश के चुनाव का मिजाज अलग-अलग होता है।
सपा और बसपा को अपने हितों से ऊपर उठकर देश के बारे में सोचना चाहिए। आज देश की जनता को मोदी सरकार के जुल्मों से निजात दिलाने की जरूरत है। सपा-बसपा दोनों आपस में ही गठबंधन कर कहीं न कहीं भाजपा को ही लाभ पहुंचाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि रालोद इस गठबंधन के खिलाफ है। जहां तक सीटों के बंटवारें का सवाल है तो इनका गठबंधन पश्चिम उप्र में बिना रालोद की सहयोग के एक भी सीट नहीं जीत सकता।
Published on:
13 Jan 2019 11:20 am
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