
eye sight
कम उम्र में बच्चों को स्कूल भेजने की शुरुआत करना, बिजली बचत के फेर में कम वाट के बल्ब में बच्चों को पढ़ाई कराना और खान-पान का ध्यान नहीं रखना जैसे कारण बच्चों की आंखें खराब कर रहे हैं। जिला अंधता निवारण एवं राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत स्कूली बच्चों के नेत्रों की जांच की जाती है। वर्ष दर वर्ष ऐसे बच्चों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है, जिनकी आंखों की रोशनी कमजोर हो चुकी है।
केन्द्र व प्रदेश सरकार कुपोषण दूर करने के लिए तमाम प्रयास कर रही है। विद्यालयों व आंगनबाडिय़ों में मिड-डे मील, पोषाहार बच्चों को दिया जा रहा है, जिस पर करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं। बावजूद इसके बच्चों की आंखों की रोशनी कम हो रही है। जिला अंधता निवारण कार्यक्रम एवं राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत की गई स्क्रीनिंग में पता चला कि वर्ष 2015-16 में 103627 में से 1093 बच्चे जबकि 2016-17 में केवल दो महीने की स्क्रीनिंग में 56163 में से 285 बच्चे दृष्टि दोष पीडि़त मिल चुके हैं।
बच्चों की समस्याएं
दृष्टिदोष से पीडि़त नौनिहालों को दैनिक जीवन में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। किसी को ब्लॅक बोर्ड पर लिखे अक्षर नहीं दिखते तो किसी को किताब बिल्कुल आंखों से सटाकर पढऩी पड़ती है। किसी को सुबह उठने के बाद आंखों में खुजली शुरू हो जाती है तो किसी को थोड़ी देर पढऩे से सिरदर्द होने लगता है।
बच्चों में दृष्टि दोष की मुख्य वजह
कम उम्र में स्कूल में दाखिला।
जरूरत से ज्यादा और अंधेरे में टीवी देखना।
1992 केस मिले ढाई वर्षों में अंधता के।
कम रोशनी में पढ़ाई करना
भोजन में पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्वों का अभाव
नि:शुल्क हैं चश्मे
इस कार्यक्रम के तहत स्कूलों में बच्चों की नेत्र जांच की जाती है। दृष्टि दोष पीडि़त बच्चों को नि:शुल्क चश्मे दिए जाते हैं। इसे संबंधित प्रिंसिपल ब्लॉक के अधिकारी प्रमाणित करते है। इस आधार पर सरकार ऐसी संस्थाओं को अनुदान जारी करती है।
बच्चों के आउटडोर गेम का चलन बंद हो गया है। बच्चे टीवी, वीडियो, मोबाइल गेम खेलने के साथ पढ़ाई में व्यस्त रहते हैं। इससे आंखों की मसल्स कमजोर होने लगती है, जिससे धीरे-धीरे बच्चों में दृष्टि दोष होने लगता है।
डॉ. अरविंद मोहता, नेत्र रोग विशेषज्ञ
जिला अंधता निवारण कार्यक्रम के तहत स्कूलों में बच्चों की नेत्र जांच की जा रही है। विभाग पूरी तरह से मॉनिटरिंग कर रहा है। अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों को पौष्टिक आहार दें। पढ़ाई के दौरान ट्यूबलाइट जलाएं। कम उम्र में बच्चों को स्कूल भेजना शुरू नहीं करें।
डॉ. रमेश गुप्ता, आरसीएचओ
Published on:
18 Sept 2016 01:52 am
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