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उलेमाआें ने इस्लाम और हिंसा को लेकर कही बड़ी बात आैर मुसलमानों को दी ये सलाह, देखें वीडियो

जलसे में महिलाआें के साथ होने वाले अत्याचारों पर भी विरोध जताया गया  

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उलेमाआें ने इस्लाम और हिंसा को लेकर कही बड़ी बात आैर मुसलमानों को दी ये सलाह

मेरठ। इस दौर में मजहब-ए-इस्लाम को आतंकवाद से इस तरह जोड़ दिया गया है कि अगर कोई व्यक्ति किसी गैर मुस्लिम के सामने इस्लाम का शब्द ही बोलता है तो उसके मन में तुरंत आतंकवाद का ख्याल घूमने लगता है। जैसे कि आतंकवाद, अल्लाह इस्लाम ही का दूसरा नाम है। जबकि हिंसा और इस्लाम में आग और पानी जैसा बैर है। यह बातें मेरठ के जैदी फार्म में हुए जलसे के दौरान हाजी इमाम अब्बास ने कहीं।

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जलसे में काफी संख्या में मुस्लिम महिलाएं और पुरूष मौजूद थे। इस दौरान कारी उस्मान ने जलसे को संबोधित करते हुए कहा कि जहां हिंसा हो वहां इस्लाम की कल्पना तक नहीं की जा सकती। इसी तरह जहां इस्लाम हो वहां हिंसा की हल्की सी भी छाया नहीं पड़ सकती। इस्लाम अमन व सलामती का स्रोत और मनुष्यों के बीच प्रेम व खैर ख्वाही को बढ़ावा देने वाला मजहब है। इस्लाम वह शब्द है जिसका असल माद्दा सीन लाम मीम है। जिसका शब्दिक अर्थ बचने, सुरक्षित रहने और सुलह व अमन-सलामती पाने और प्रदान करने के हैं। उन्होंने कहा कि हदस-ए-पाक में साफ कहा गया है कि सबसे अच्छा मुसलमान वह है जिसके हाथ और जुबान से मुसलमान सलामत रहे। इसी माद्दे के बाद इफआल से शब्द इस्लाम बना है। उन्होंने कहा कि इससे साबित हो गया कि इस्लाम का शब्द ही हमें बताता है कि यह मजहब अमन व शांति, बन्धुत्व व भाईचारगी का मजहब है। इस मजहब अर्थात इस्लाम को बनाने वाला इसकी शिक्षा नबियों के माध्यम से इंसानों तक पहुंचाने वाला अर्थात सारे ब्रहमांड का पैदा करने वाले जिसे मुसलमान अपना रब और अल्लाह कह कर पुकारते हैं वह अपने बन्दों पर मेहरबान है। चाहे वह मुस्लिम हो या गैर मुस्लिम उस रब की रहमत सब बन्दों पर बराबर-बराबर है। सहाबा अमन व अमान का दर्श देते रहे उनके बाद ताबईन और फिर तबा ताबईन और फिर हर दौर में उलेमा-ए-इस्लाम औलिया-ए-किराम और सूफिया-ए-इजाम उल्फत व मोहब्बत का संदेश देते रहे। आज मजहब-ए-इस्लाम में उल्फत व मोहब्बत का संदेश दिया जा रहा है।

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इस्लाम को आतंक से जोड़ना अन्याय

यह बात साबित है कि आज जो इस्लाम को आतंकवाद से जोड़ा जा रहा है यह सरासर अन्याय है और अगर कोई ऐसा व्यक्ति आतंकवाद करे, जो टोपी और कुर्ता पहना हो तो उसे देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि मुसलमान आतंकवादी है, क्योंकि मुसलमान केवल टोपी-दाढ़ी रख लेने का नाम नहीं है। बल्कि जिसके अन्दर लोगों के खून की हिफाजत करने का जज्बा होगा, वह मुसलमान होगा। क्योंकि मजहब ए इस्लाम इसी की तालीम देता है। अतः जहां आतंकवाद है वहां इस्लाम का नाम व निशान भी नहीं है। हर मुस्लिम अपने इस्लाम को अच्छे से समझे। ताकि हर उठते हुए सवाल का जवाब डटकर दे सके। गैर मुस्लिमों के सामने अपने इस्लाम की हकीकत को पेश कर सके। इस दौरान कई मुस्लिम उलमाओं ने भी अपने विचार रखे। उन्होंने महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचारों का भी विरोध किया।