
मेरठ। मेरठ स्थित सूरजकुंड क्षेत्र में मां सरस्वती देवी का सिद्धपीठ मंदिर है। यहां यूपी समेत अन्य राज्यों से विद्यार्थी और कलाकार मां का आशीर्वाद लेने आते हैं और देवी मां इनकी मनोकामना पूरी करती हैं। उत्तर भारत में स्थित सरस्वती देवी के तीन मंदिरों में शामिल इस सिद्धपीठ की प्रतिमा त्रेता युग की बताई जाती है। यहां पाखर के पेड़ के नीचे मिट्टी में दबी हुई सरस्वती मां की प्रतिमा को स्थापित करके मंदिर का निर्माण कराया गया था।
सरस्वती सिद्धपीठ मंदिर के पुजारी पंडित हरिहर नाथ झा के मुताबिक देवी की प्रतिमा त्रेता युग की है। यहां पाखर के पेड़ के नीचे मां सरस्वती देवी की प्रतिमा दबी हुई थी। करीब 180 साल पहले जब अंग्रेजों का भारत में शासन था तो मेरठ कैंट में तैनात एक अंग्रेज अफसर की पत्नी की सनातन धर्म में रुचि थी, वह मंदिर में पूजा-अर्चना करने आती थी। एक दिन प्राकृत भाषा में देवी की आवाज अंग्रेज अफसर की पत्नी को सुनाई दी। देवी ने कहा कि वृक्ष के नीचे मेरी प्रतिमा दबी हुई है। मेरी प्रतिमा यहां से निकालो। पाखर के वृक्ष को खुदवाया गया तो मां सरस्वती देवी की प्रतिमा निकली, लोगों ने इस प्रतिमा को रखकर उसकी पूजा-अर्चना शुरू की, तब यहां मंदिर का निर्माण कराया गया। उसके बाद से यहां दूर-दूर से श्रद्धालु देवी का आशीर्वाद लेने आते हैं।
पंडित हरिहर नाथ झा का कहना है कि जम्मू-कश्मीर, मिर्जापुर के अलावा उत्तर भारत में मां सरस्वती देवी का यह सिर्फ तीसरा मंदिर है। यह सिद्धपीठ है, अगर श्रद्धालु लगातार 41 दिन तक देवी के सामने दीपक जलाते हैं तो देवी उनकी मनोकामना अवश्य पूरी करती हैं। किसी भी तरह की पढ़ाई करने वाले, इंजीनियरिंग, वैज्ञानिक समेत अनेक छात्र-छात्राएं मां सरस्वती देवी की पूजा-अर्चना करने सिद्धपीठ आते हैं। देवी उनकी मनोकामना अवश्य पूरा करती हैं।
Updated on:
24 Feb 2020 04:20 pm
Published on:
24 Feb 2020 03:53 pm
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