27 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

Kargil Vijay Diwas: लांसनायक सतपाल सिंह की वीरगाथा पढ़ करेंगे गर्व, PAK सेना को चटा दी थी धूल

Highlights: -लांसनायक ने पाक के खिलाफ दिखाई थी वीरता -राजपूताना राइफल्स के लांसनायक सतपाल सिंह युद्ध में हुए थे शहीद -आज भी लोग करते हैं वीर को याद

2 min read
Google source verification

मेरठ

image

Rahul Chauhan

Jul 26, 2020

download.jpeg

मेरठ। 26 जुलाई का दिन कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) के रूप में मनाया जाता है। 1999 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में भारतीय सैनिकों ने ऐसी जाबांजी दिखाई कि दुश्मन देश की सेना को उल्टे कदम लौटना पड़ा था। इस युद्ध में मेरठ के भी लाल शहीद हुए थे। इन्हीं में शामिल हैं सैकेंड राजपूताना राइफल्स (Rajputana Rifles) बटालियन के लांस नायक सतपाल सिंह (Lance Naik Satpal Singh)। जिनकी जांबाजी को लोग आज भी याद करते हैं।

यह भी पढ़ें: प्रेमिका ने प्रेमी के साथ मिलकर पुराने प्रेमी को उतारा मौत के घाट, पूरा मामला जानकर भन्ना जाएगा सिर

मेरठ के सैनिक एनक्लेव में रहने वाले गढ़ मुक्तेश्वर के गांव लुहारी के मूल निवासी लांस नायक सतपाल सिंह जनवरी 1999 में अवकाश बिताकर ग्वालियर पहुंचे तो वहां से उनका तैनाती जम्मू के लिए कर दी गई। बटालियन जम्मू पहुंची ही थी कि इसी बीच कारगिल युद्ध शुरू हो गया। उनकी बटालियन सेकेंड राजपूताना राइफल्स को फौरन कारगिल पहुंचने के आदेश हुए। लांस नायक सतपाल सिंह युद्ध में गए हुए हैं। इसकी सूचना उनके घर किसी को नहीं थी। इसी बीच उनकी यूनिट के तीन साथी सैदपुर गुलावठी के चमन, सुरेंद्र और जसवीर कारगिल के शहीद होने की सूचना आयी। इसके बाद सतपाल सिंह के परिवार में उनकी चिंता होने लगी। परिवार के लोगों ने पत्र लिखा तो लांस नायक सतपाल का जवाब आया कि उन्होंने तोलोलिंग चोटी जीत ली है, लेकिन दुश्मन अभी बहुत सारी चोटियों पर कब्जा किए बैठे हैं। ऐसे में युद्ध खत्म होने से पहले नहीं आ सकता। मेरी चिंता मत करना।

यह भी पढ़ें: 'ठेके पर बिकी शराब तो दुकान में लगा देंगे आग'

शहीद लांस नायक की पत्नी बबीता बताती हैं कि दो जुलाई 1999 को गांव में बहादुरगढ़ थाने का सिपाही उनके घर पहुंचा। सिपाही ने बताया कि सेना मुख्यालय से खबर है कि 28 जून को लांस नायक सतपाल सिंह द्रास सेक्टर में दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए हैं। सूचना मिलते ही पूरे गांव में कोहराम मच गया था। वीर नारी बबीता ने बताया कि उस समय मेरी उम्र 22 साल की थी। पति की शहादत की सूचना मिलने के बाद वह दस दिन तक बेहोश रही थी। उस समय उनका बेटा पुलकित साढ़े तीन साल और बेटी दिव्या ढाई वर्ष थी। मेरे सामने कुछ नजर नहीं आ रहा था। दोनों बच्चों की जिम्मेदारी उन पर आ गई थी। मैंने दोनों बच्चों की बेहतर पढ़ाई का लक्ष्य बनाया। दोनों उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, इस दौरान उन्होंने पिता की कमी महसूस नहीं होने दी।