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शहर से कहां गायब हो गई साइकिलेें

नागौर में शौकीनों व बच्चों तक सिमटा साइकिलों का कारोबार, हजारों का कारोबार अब उंगलियों पर आया

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मेरठ

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Dharmendra Gaur

Jun 22, 2017

Nagaur has now reduced the bicycle structure

Nagaur has now reduced the bicycle structure

नागौर. शहर के वाहन बाजार में साइकिल का रुतबा घट गया है। इसके खरीदार अब सैंकड़ों में नहीं, उंगलियों में सिमटकर रह गए। नतीजतन इसका व्यवसाय भी घटा है। अब इसका दायरा केवल पांच से दस प्रतिशत जरूरतमंद या, शौकीनों अथवा बच्चों तक रह गया। दुकानदारों का कहना है कि यही वजह है कि पांच से दस वर्ष पूर्व तक सभी जगह पर नजर आने वाली साइकिलें गायब होने लगी है, वहीं इसके कारोबार का दम भी टूटने लगा है। सैकण्ड हैंड वाहनों की खरीद में साइकिल का कद अब वह नहीं रहा जो दस साल पहले था। शहर में हालांकि दो दर्जन से अधिक साइकिल मरम्मत करने की दुकानें हैं, लेकिन इनके यहां पुरानी साइकिल की खरीद होती भी है तो वह कोई बेहद जरूरतमंद होता है या फिर ग्रामीण। यह संख्या ज्यादा नहीं रह गई है, बमुश्किल पूरे साल में चार या पांच खरीदार आते हैं। इनमें भी केवल खरीद करने वालों की संख्या, आने वालों की अपेक्षा आधी ही रहती है। इस संबंध में शहर के गांधी चौक व दिल्ली दरवाजा तथा शिवबाड़ी कुम्हारवाड़ा के दुकानदारों से पुरानी साइकिलों के कारोबार पर बात हुई तो उनका साफ कहना था कि भाईसाब अब तो इसका धंधा ही नहीं रहा। यह जो आप पुरानी साइकिलें देख रहे हैं न, यह छोटे बच्चे ही शौकिया चलाते हैं। लंबे समय से यह रखी हुई है, लेकिन खरीदार कोई नहीं मिला। यही स्थिति पूरे बाजार की है। अब नई साइकिल तो ज्यादा बिकती नहीं है, पुरानी कौन खरीदेगा।


फायदेमंद है, फिर भी खरीदार नहीं
दुकानदारों का कहना है कि साइकिल चलाने से न केवल पूरे शरीर की कसरत हो जाती है, बल्कि धमनियों में रक्त का प्रवाह भी बराबर बना रहता है। इस फायदे को सभी जानते हैं। यह फायदे बाइक या कार चलाने में नहीं है। इसके बाद भी अब इसके खरीदार गायब होने लगे हैं।

कुम्हारवाड़ा में साइकिलों की मरम्मत करने वाले अब्दुल करीम ने बताया कि वह पिछले ४० साल से साइकिल की दुकान चला रहे हैं। अब तो पुरानी में, वो भी छोटी साइकिलों को चलाने के लिए कुछ छोटे बच्चे आ जाते हैं। वे किराए पर साइकिल थोड़ी देर के लिए ले जाते हैं। रोजाना का इनसे केवल ३०-४० रुपए ही मिल पाता है। केवल इसी के सहारे रहते तो दुकान कब की बंद हो जाती, वाहनों के पंक्चर आदि भी बनाना सीखना पड़ा, तब जाकर दुकान चल रही है। नहीं तो बाइक के सामने अब साइकिल की क्या मजाल।