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यहां रंगों से नहीं प्राकृतिक रंगों से खेली जाती है होली, जाने कैसे

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र और मिर्जापुर जिले के कुछ इलाकों में आदिवासी समाज के लोग आज भी प्राकृतिक रंगों का उपयोग करते आए हैं। जिनका प्रकृति से जुड़ाव देखते बनता है.

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Holi Celebration Lucknow

Holi Celebration Lucknow

Holi 2025: होली का पर्व रंगों का त्योहार कहा जाता है. इस दिन लोग एक दूसरे को रंग-बिरंगे रंगों में सरोबोर करने के साथ विविध प्रकार के अबीर-गुलाल लगाकर त्यौहार मनाते आए हैं। लेकिन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र के लोग आज भी प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करते हुए होली के त्यौहार को खुशनुमा ढंग से मानते आए हैं। हालांकि बदलते कल्चर, रीति-रिवाजों के साथ यह प्रचलन भी धीरे-धीरे अब विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुका है, लेकिन कुछ एक इलाकों में आज भी आदिवासी समाज के लोग इस परंपरा का निर्वहन बड़े ही शिद्दत के साथ करते आए हैं। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र और मिर्जापुर जिले के कुछ इलाकों में आदिवासी समाज के लोग आज भी प्राकृतिक रंगों का उपयोग करते आए हैं। जिनका प्रकृति से जुड़ाव देखते बनता है।

आदिवासी क्षेत की परंपरा

मिर्जापुर के राजगढ़ और सोनभद्र के घोरावल, शाहगंज से लगने वाले इलाकों के आदिवासी, कोल समाज सहित अन्य लोग होली पर्व का त्यौहार अपनी पुरानी परंपराओं, रीति-रिवाज के अनुसार मनाते हैं। यह केमिकल युक्त रंगों की बजाय केशु और पलाश के फूलों से तैयार प्राकृतिक रंगों का उपयोग करते हैं. आदिवासी समाज के लोग बताते हैं कि इससे शरीर पर कोई कु-प्रभाव नहीं पड़ता है, जबकि केमिकल युक्त रंगों का कु-प्रभाव पड़ता है. प्राकृतिक रंगों के साथ-साथ कहीं-कहीं रंगों के बजाय फूलों की होली भी खेली जाती है।

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के कुछ हिस्सों में रहने वाले छत्तीसगढ़ राज्य के आदिवासी समाज के लोग आज भी प्राकृतिक रंगों और पुरातन परंपरा को लेकर अपने तीज़-त्यौहार मनाते हैं इनमें से एक होली का पर्व भी है, हालांकि इसके अलावा एक बुराई भी आदिवासी समाज के अंदर आज भी दिखाई देती है वह है नशे की प्रवृत्ति जिससे यह समाज आज भी मुक्त नहीं हो पाया है. होली जैसे रंग-बिरंगे पर्व पर यह समाज जमकर देसी दारू (शराब) का उपयोग करता है इसके लिए यह खुद ही शराब तैयार करते हैं


वरिष्ठ पत्रकार दिनेश सिंह पटेल बताते हैं कि 'वैसे अब धीरे-धीरे यह परंपरा विलुप्त भी होती जा रही है आधुनिकता की चादर ने इसे भी अपने से ढक लिया है. वह बताते हैं कि कुछ इलाकों में आदिवासी समाज के लोग कंकड़ मार होली भी खेलते हैं. एक दूसरे पर मिट्टी के कंकड़ों का प्रहार कर हंसी-ठिटौली के साथ यह अपने रीति-रिवाज के मुताबिक मिलजुल कर होली मनाते रहे हैं अब यह भी परंपरा धीरे-धीरे विलुप्त हो चुकी है।

गौरतलब हो कि सोनभद्र आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के साथ-साथ जंगलों पहाड़ों से समृद्ध इलाका है जहां की लोक संस्कृति लोक कला देखते ही बनती है। यहां का आदिवासी लोक नृत्य विभिन्न सांस्कृतिक मंचों पर आज भी देखने को मिलता है. आदिवासी समाज के लोग अपनी परंपराओं की थाथी को संभाल कर चलते हैं, हालांकि आधुनिकता की दौड़ में बहुत कुछ बदलाव तेजी के साथ हुआ है फिर भी अभी भी इन इलाकों में कुछ लोक परंपराएं जीवित बची हुई है


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