मिर्ज़ापुर. कभी हर घर के आंगन में चह चहाने वाली गौरैया अब देखने को नहीं मिलती है। लगभग एक दशक पहले हमारे और आप के घर-आंगन में फुदकने, चहकने वाली गौरैया अब ढूंढे नहीं मिलती। यह विलुप्त होने के कगार पर यह प्रजाति पहुंच चुकी है। मगर इस बीच विंध्याचल में एक परिवार एेसा भी है। जो पिछले दो पीढ़ियों से गौरैया के संरक्षण में जुटा है।
कहते हैं कुध हादसे ऐसे होते हैं, जो आपकी लाइप बदल देते हैं। ऐसा ही हुआ मिर्जापुर के मिठ्ठू लाल के साथ। इनके घर में भी एक ऐस हादसा हुआ जसने इनके परिवार औऱ इनकी लाइफ बदल दी।
जिसके बाद, मिठ्ठू मिश्रा के परिवार के लिए गौरैया अभिन्न हिस्सा बन गई है। वह 1990 से आधुनिक तरीके से गौरैया संरक्षित करने का कार्य कर रहे हैं। इस परिवार का घर गौरैया का शरणस्थली बन चुका है। सैकड़ों से अधिक गौरैया घर-आगन में घोंसला बनाकर रहती हैं। इसके लिए पूरे घर के आंगन में लकड़ी के घोंसले बनाये गए हैं। वर्तमान में सैकड़ों की संख्या में गौरैया इन घोसलों में रह रही हैं। इनके लिए यहां पर खाने और पानी कि व्यवस्था की गई है। गौरैया को संरक्षित करने की कहानी भी रोचक है।
मिठ्ठू मिश्रा ने बताया कि, इसकी शुरुआत उनके पिता वीरेंद्र मिश्रा के द्वारा हुई। जब पूजा के कमरे में एक गौरैया अपने दो बच्चों के साथ रहती थी। उसी समय दुर्घटनावस पंखे से कट कर गौरैया की मौत हो गई।
जिसके बाद गौरया के दोनों बच्चो का पालना शुरू किया। दो गौरया के संरक्षण से शुरू सफर आज सैकड़ों गौरैया तक पहुंच चुका है। मिठ्ठू मिश्रा का कहना है कि, गौरैया संरक्षित रहने से बरगद और पीपल के वृक्ष भी संरक्षित रहेंगे जो की एक पूजनिय वृक्ष है। गौरैया विलुप्त होने से बरगद पीपल के वृक्ष भी विलुप्त हो जाएंगे जो हमारे जीवन के लिए ऑक्सीजन देते हैं।
सभी लोगों को गौरेया संरक्षित करना चाहिए। जिससे अगला पीढ़ी भी संरक्षित कर पाए। फिलहाल कभी बगीचे, रोशनदान, अटारी पर मंडराती थी उसकी उनकी चहचहाट पूरे घर में सुनाई देती थी। तो कभी गौरैया पानी में नहाती या धूल में लोटती तो माना जाता था कि, बारिश होने वाली है। मगर आज कम होते हरियाली और घरो के आसपास हो रहे विशाक्त वातावरण ने गौरैया को पूरी तरह से गायब कर दिया।
by सुरेश सिंह