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देश में बढ़े हिंदी को मातृभाषा मानने वाले, खराब हुई उर्दू की हालत

2011 की जनगणना के आधार पर भारतीयों भाषाओं को मातृभाषा मानने वाले की लोगों की संख्या को लेकर एक रिपोर्ट सामने आई है। 2001 में छठे स्थान पर रही उर्दू 2011 में खिसककर सातवें स्थान पर पहुंच गई।

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देश में बढ़े हिंदी को मातृभाषा मानने वाले, खराब हुई उर्दू की हालत

नई दिल्ली। भारतीय भाषाओं में हिंदी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में पहले नंबर पर बरकरार है, 2001 से 2011 के बीच इसमें करीब ढाई फीसदी की बढ़ोतरी बी हुई है। दूसरी तरफ इस मामले में संस्कृत की स्थिति बेहद खराब है। 2011 की जनगणना के आधार पर भारतीयों भाषाओं को मातृभाषा मानने वाले की लोगों की संख्या को लेकर एक रिपोर्ट सामने आई है। 2001 में छठे स्थान पर रही उर्दू 2011 में खिसककर सातवें स्थान पर पहुंच गई। रिपोर्ट के मुताबिक देश में उर्दू को मातृभाषा मानने वालों की संख्या 5,07,72,631 है।

ये हैं शीर्ष पांच भाषाएं






























भाषा



मातृभाषा मानने वाले



हिंदी



43.63 फीसदी



बांग्ला



8.30 फीसदी



मराठी



7.09 फीसदी



तेलुगू



6.93 फीसदी



गुजराती



4.74 फीसदी


संस्कृत का हाल बेहद खराब

प्राप्त जानकारी के मुताबिक 2001 में 41.03 फीसदी लोगों ने हिंदी को मातृभाषा बताया था जबकि 2011 में ऐसे लोगों की संख्या बढ़कर 43.63 फीसदी हो गई। 22 सूचीबद्ध भाषाओं में संस्कृत सबसे कम बोली जाने वाली भाषा है। गौरतलब है कि महज 24,821 लोगों ने ही संस्कृत को अपनी मातृभाषा बताया है। इस मामले में संस्कृत अब बोडो, मणिपुरी, कोंकणी और डोगरी भाषाओं से भी पीछे है।

सबसे ज्यादा अंग्रेजीभाषी महाराष्ट्र में

अंग्रेजी भारत समेत दुनियाभर में कामकाज की मुख्य भाषा मानी जाती है। लेकिन मातृभाषा के मामले में अंग्रेजी की स्थिति इतनी अच्छी नहीं है। 2011 की जनगणना में अंग्रेजी को करीब 2.6 लाख लोगों ने मातृभाषा बताया। गौरतलब है कि इनमें सबसे ज्यादा 1.06 लाख लोग अकेले महाराष्ट्र से हैं। इस मामले में तमिलनाडु दूसरे और कर्नाटक तीसरे स्थान पर है।

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राजस्थान की भिली सूचीबद्ध भाषाओं से भी आगे

गैर सूचीबद्ध भाषाओं में राजस्थान में बोली जाने वाली भिली/भिलौड़ी 1.04 करोड़ की संख्या के साथ पहले नंबर पर है। इसके बाद गोंडी दूसरे नंबर पर है। इसे बोलने वालों की संख्या 29 लाख है।

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