
नई दिल्ली: हिंदुस्तान के इतिहास में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को आयरन लेडी तो सरदार वल्लभ भाई पटेल को आयरन मैन के नाम से जाना जाता है। आज इंदिरा गांधी की 33वीं पुण्यतिथी है तो वहीं सरदार वल्लभ भाई पटेल की 142वीं जयंती है। इंदिरा गांधी की हत्या 31 अक्टूबर 1984 को हुई थी। आज तक इंदिरा गांधी की हत्या पर से पर्दा नहीं उठ पाया है।
इंदिरा गांधी का आखिरी दिन
- 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की गोली मारकर हत्या की गई थी। इससे पहले इस दिन इंदिरा गांधी का काफी व्यस्त कार्यक्रम था। इस दिन उनका पहला अप्वाइंटमेंट पीटर उस्तीनोव के साथ था जो उन पर डॉक्यूमेंट्री बना रहे थे। दोपहर में उन्हें ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री जेम्स कैलेघन और मिजोरम के एक नेता से मिलना था और शाम मे ब्रिटेन की राजकुमारी ऐन को भोज देने वाली थीं।
- इंदिरा गांधी इस दिन सुबह साढ़े सात बजे तक तैयार हो गईं थी। उस दिन उन्होंने केसरिया रंग की साड़ी पहनी थी, जिसका बॉर्डर काला था। नाश्ते के बाद उनके डॉक्टर केपी माथुर उनके रूटीन चेकअप के लिए पहुंचे। वह उन्हें रोज इसी समय देखते थे।
नौ बजकर 10 मिनट पर वह बाहर आईं।
- उन्हें धूप से बचाने के लिए सिपाही नारायण सिंह काला छाता लिए हुए उनके बगल में चल रहे थे। कुछ कदम की दूरी पर आरके धवन और उनके भी पीछे थे इंदिरा गांधी के निजी सेवक नाथू राम। सबसे पीछे थे उनके निजी सुरक्षा अधिकारी सब इंस्पेक्टर रामेश्वर दयाल।
- जब इंदिरा गांधी एक अकबर रोड को जोडऩे वाले गेट पर पहुंची तो वो धवन से बात कर रही थीं, साथ में आरके धवन थे। अचानक वहां तैनात सुरक्षाकर्मी बेअंत सिंह ने अपनी रिवॉल्वर निकालकर इंदिरा गांधी पर फायर कर दिया। गोली उनके पेट में लगी। इंदिरा ने चेहरा बचाने के लिए अपना दाहिना हाथ उठाया, लेकिन तभी बेअंत ने बिल्कुल प्वॉइंट ब्लैंक रेंज से दो और फायर किए। ये गोलियां उनकी बगल, सीने और कमर में घुस गईं।
- वहां से पांच फुट की दूरी पर सतवंत सिंह अपनी टॉमसन ऑटोमैटिक कारबाइन के साथ खड़ा था। इंदिरा गांधी को गिरते हुए देख वो इतनी दहशत में आ गया कि अपनी जगह से हिला तक नहीं। तभी बेअंत ने उसे चिल्ला कर कहा गोली चलाओ। सतवंत ने तुरंत अपनी ऑटोमैटिक कारबाइन की सभी पच्चीस गोलियां इंदिरा गांधी पर दाग दी।
-सबसे पहले सबसे पीछे चल रहे रामेश्वर दयाल ने आगे दौडऩा शुरू किया, लेकिन वो इंदिरा गांधी तक पहुंच पाते कि सतवंत की चलाई गोलियां उनकी जांघ और पैर में लगीं और वो वहीं ढेर हो गए। उसी समय बेअंत सिंह और सतवंत सिंह दोनों ने अपने हथियार नीचे डाल दिए।
-वहां हर समय एक एंबुलेंस खड़ी रहती थी, लेकिन उस दिन उसका ड्राइवर उस वक्त नहीं था। इंदिरा के राजनीतिक सलाहकार माखनलाल फोतेदार ने चिल्लाकर कार निकालने के लिए कहा।
- वहीं गोलियों की आवाज सुनकर सोनिया गांधी मम्मी-मम्मी चिल्लाती हुईं बाहर आईं। इंदिरा गांधी की हालत देखकर वह उसी हाल में कार की पीछे की सीट पर बैठ गईं और ख़ून से लथपथ इंदिरा गांधी का सिर अपनी गोद में ले लिया।
- कार नौ बजकर 32 मिनट पर एम्स पहुंची। एमरजेंसी वार्ड का गेट खोलने और इंदिरा को कार से उतारने में तीन मिनट लग गए। डॉक्टरों की एक टीम फौरन वहां पहुंची। इस टीम में डॉक्टर गुलेरिया, डॉक्टर एमएम कपूर और डॉक्टर एस बालाराम पहुंच गए। एक डॉक्टर ने उनके मुंह के जरिये उनकी सांस की नली में एक ट्यूब घुसाई, ताकि फेफड़ों तक ऑक्सीजन पहुंच सके और दिमाग को जिंदा रखा जा सके। उन्हें 80 बोतल ख़ून चढ़ाया गया था जो उनके शरीर की सामान्य ख़ून मात्रा का पांच गुना था। डॉक्टरों ने ईसीजी करने के बाद उन्हें मृत बता दिया, हालांकि उनकी मौत की घोषणा उस वक्त नहीं की गई।
गोली मारे जाने करीब चार घंटे बाद 2 बजकर 23 मिनट पर इंदिरा गांधी को मृत घोषित किया गया। लेकिन सरकारी प्रचार माध्यमों ने इसकी घोषणा शाम छह बजे तक नहीं की।
सरकारी एजेंसियों ने जताई थी आशंका
इंदिरा गांधी की जीवनी लिखने वाले इंदर मल्होत्रा बताते हैं कि ख़ुफिया एजेंसियों ने आशंका प्रकट की थी कि इंदिरा गांधी पर इस तरह का हमला हो सकता है। उन्होंने सिफारिश की थी कि सभी सिख सुरक्षाकर्मियों को उनके निवास स्थान से हटा लिया जाए। लेकिन जब ये फाइल इंदिरा के पास पहुंची तो उन्होंने बहुत ग़ुस्से में उस पर तीन शब्द लिखे, 'आर नॉट वी सेकुलर? (क्या हम धर्मनिरपेक्ष नहीं हैं?)
उसके बाद ये तय किया गया कि एक साथ दो सिख सुरक्षाकर्मियों को उनके नजदीक ड्यूटी पर नहीं लगाया जाएगा। 31 अक्टूबर के दिन सतवंत सिंह ने बहाना किया कि उनका पेट खराब है, इसलिए उसे शौचालय के नजदीक तैनात किया जाए। इस तरह बेअंत और सतवंत एक साथ तैनात हुए।
Published on:
31 Oct 2017 12:43 pm
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