
पश्चिम का भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिक विरासत से परिचय करवाने वाले स्वामी विवेकानन्द का जीवन अपने आप में एक प्रेरणा स्रोत है। उन्होंने 39 वर्ष की अल्पायु में ही अपनी नश्वर देह को त्याग दिया था परन्तु इतनी छोटे जीवन में भी वे अनगिनत ऐसी कहानियां छोड़ गए जो दूसरों को जीने की राह दिखाती हैं।
12 जनवरी 1863 को तत्कालीन कलकत्ता में एक प्रसिद्ध वकील विश्वनाथ सेन के यहां स्वामी विवेकानन्द का जन्म हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। बचपन से ही उनमें भगवान को पाने की लगन थी। इसी हेतु वे विभिन्न साधुओं से मिलते, संस्थाओं में जाते और अंत में उनकी खोज रामकृष्ण परमहंस के पास जाकर समाप्त हुई। उन्होंने रामकृष्ण परमहंस से विधिवत दीक्षा ली और मां काली के दर्शन किए।
राजस्थान के खेतड़ी के महाराजा के सहयोग से वह शिकागो में आयोजित महा धर्म सम्मेलन में भाग लेने पहुंचे। वहां उन्हें बोलने के लिए मांच पांच मिनट दिए गए परन्तु जब उन्होंने बोलना शुरू किया तो उनके भाषण से सभी अभिभूत हो गए और पूरे अमरीका तथा यूरोप में भारतीय विद्वता का डंका बजने लगा। उनके जीवन में अनेकों ऐसी घटनाएं हुई जिन्होंने पूरी मानवता के सामने आगे बढ़ने की राह दिखाई हैं, जानते हैं ऐसे ही कुछ प्रसंगों के बारे में-
एक बार अपनी अमरीका यात्रा के दौरान स्वामी विवेकानंद एक पुल से गुजर रहे थे। रास्ते में उन्होंने कुछ लड़कों को निशाना लगाते देखा परन्तु उनमें से किसी का भी सही निशाना नहीं लग पा रहा था। ऐसे में स्वामी विवेकानंद ने स्वयं बंदूक संभाली और एक के बाद एक लगातार सारे सही निशाने लगाए। जब लोगों ने उनके पूछा कि आपने यह कैसे किया तो उन्होंने कहा, जो भी काम करो, अपनी पूरी एकाग्रता उसी में लगा दो। सफलता अवश्य मिलेगी।
इसी प्रकार एक बार बनारस में वह एक मंदिर से प्रसाद लेकर बाहर निकल रहे थे कि वहां मौजूद कई बंदरों ने उन्हें घेर लिया। वे बंदरों से बचने के लिए भागने लगे परन्तु बंदर उनके मार्ग में आ गए और उन्हें डराने लगे। तभी वहां आए एक वृद्ध सन्यासी ने उन्हें कहा कि डरो मत, उनका सामना करो। वृद्ध सन्यासी की यह बात सुनकर स्वामी विवेकानंद पलटे और बंदरों की तरफ जाने लगे। ऐसा होते ही सारे बंदर भाग गए और वे पुन: निर्भय हो गए।
स्वामी विवेकानंद ने इस घटना का उल्लेख करते हुए एक बार अपने संबोधन में कहा भी कि कभी भी किसी समस्या से डरो मत, उसका सामना करो, उससे लड़ो।
इसी प्रकार एक बार विदेश यात्रा के दौरान एक महिला ने स्वामी विवेकानंद से कहा कि मैं आपसे विवाह कर आपके जैसा गौरवशाली, सुशील और तेजयुक्त पुत्र पाना चाहती हूं। इस पर विवेकानंद ने कहा कि मैं सन्यासी हूं और विवाह नहीं कर सकता परन्तु आप मुझे ही पुत्र मान लीजिए तो आपकी इच्छा भी पूर्ण हो जाएगी और मुझे भी मां का आशीर्वाद मिल जाएगा। उनके इस उत्तर को सुनते ही वह महिला उनके चरणों में गिर गई और उसने माफी मांगी।
Published on:
04 Jul 2021 09:10 am
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