
प्रजनन क्षमता और विकास दर में गिरावट के बावजूद भारत दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश बनने की राह पर है। क्या आपने कभी सोचा है कि आजादी के 70 सालों बाद भी जनसंख्या विस्फोट की स्थिति क्यों बनी हुई है और इसने शहर से गांव की ओर पलायन को कैसे बढ़ावा दिया।
जनसंख्या वृद्धि दर
आजादी के बाद भारत में चौकाने वाली गति से जनसंख्या में बढ़ोतरी हुई है। 1960 में आबादी 44 करोड़ 60 लाख थी जो 2000 में बढ़कर एक अरब 04 करोड़ हो गई। 2013 में यही आबादी 1.27 अरब तो अब 1.3 अरब के करीब है। 2001 से 2011 के बीच देश की आबादी में 18 की करोड़ की वृद्ध्ि हुई जो पाकिस्तान के कुल आबादी के बराबर थी। हालांकि इसी दौरान जनसंख्या वृद्धि दर में 4 फीसद की गिरावट भी आई जो कि आजादी के बाद सबसे बड़ी गिरावटी थी।
इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल एंड इकोनॉमिक चेंज बेंगलूरु के भारतीय डेमोग्राफर केएस जेम्स का कहना है कि 2050 से 2070 तक भारत की जनसंख्या बढ़कर 1.7 अरब से 1.8 अरब होने का अनुमान है।
जन्मदर गिरावट में भारी अंतर
भारतीय अब पहले की तुलना में कम बच्चा चाहते हैं। इसका सीधा असर जन्मदर में गिरावट के रूप में देखने को मिला। भारतीय महिलाओं की औसत बच्चों को जन्म देने की क्षमता 2.5 है और जन्मदर 2.1 है। दोनों में बहुत ज्यादे का अंतर नहीं है। यह स्थिति परिवार नियोजन और गर्भ निरोधक का प्रचलन बढ़ने की वजह से उत्पन्न हुई है। खासतौर से महिलाओं की सक्रिय भागीदारी ने अहम भूमिका निभाई है। लेकिन भारतीय राज्यों में जन्मदर में आज भी भारी अंतर होने से इसका जो लाभ मिलना चाहिए वो नहीं मिल पाया है। जहां पंजाब, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में 1.7 बच्चा औसत जन्मदर है वहीं बिहार और उत्तर प्रदेश में यह अनुपात तीन है।
जीवन प्रत्याशा
1950 के दशक में भारत में पुरुषों की आयु 38.7 और महिलाओं की 37:1 थी जो वर्तमान में बढ़कर दो गुणा हो गया है। आज पुरुषों की औसत आयु 64.4 और महिलाओं की 67.6 है। जबकि 1947 में भारत में मृत्यु दर प्रति हजार जनसंख्या पर 200 से 225 थी जो 2013 में घटकर 44 है। लेकिन जीवन प्रत्याशा में वृद्धि ने आबादी की समस्या को और विकराल बना दिया। इससे एक नई समस्या बुजुर्गों की देखभाल की उठ खड़ी हुई है।
मैंस वर्ल्ड
भारत में महिलाओं की आबादी पुरुषों की तुलना में कम है। 2011 जनगणना के अनुसार 1000 पुरुष पर महिलाओं की संख्या 914 थी। जबकि यह अनुपात 2001 में 1000:933 का था। लुंड यूनिवस्रिटी अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर नीलांबर हट्टी का कहना है कि इसके पीछे सेक्स के चयन की प्रवृत्ति और पुत्र की चाह मुख्य रूप से जिम्मेवार कारक है। खासकर शहरी और विकसित राज्यों में यह अंतराल बहुत ज्यादा है।
शौचालय से अधिक मोबाइल
आबादी ज्यादा होने से भारत दुनिया का तेजी से बढ़ता मोबाइल बाजार है। 2013 में औसतन हर महीने 1.2 करोड़ मोबाइल सब्सक्राइबर बने। मोबाइल फोन किसानों को बड़े स्तर पर संचार, व्यापार इंटरनेट की दुनिया से जोड़ने में सक्षम साबित हुआ है। लेकिन जब शौचालय की उपलब्धता की बात करते हैं तो आज भी देश में 65 करोड़ आबादी के पास शौचालय की सुविधा नहीं है और वे खुले में शौच करते हैं।
कुपोषित बच्चे
कुपोषण से भारत में पांच साल से कम उम्र के 48 फीसद बच्चों की स्थिति बहुत दयनीय होती है। यूनिसेफ रिपोर्ट के अनुसार ऐसा कुपोषण और लचर स्वास्थ्य सुविधाओं से है। कुपोषित बच्चे कुशल मानव संसाधन के रूप में विकसित नहीं हो पाते और भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था को उसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। चाइल्ड लेबर, चाइल्ड ट्रैफिकिंग और व्यावसायिक तौर पर यौन शोषण की स्थिति इन्हीं कारणों से चिंताजनक बनी हुई है।
बेबीबूम बोनस
भारत में 64 फीसद आबादी 15 से 64 उम्र की है। भारत दुनिया में वैज्ञानिक और तकनीक कार्यबल के लिहाज से भी तीसरे स्थान पर है। यह जननांकीय बोनस का लाभ भारत को आगामी कुछ दशकों तक मिलता रहेगा। लेकिन इसका पूरा लाभ भारत को तभी मिल सकता है जब वो अपने आबादी को बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा के साथ रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए।
स्लमडॉग मिलेनियम
ऑस्कर जीतने वाली फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर में युवा लतिका के रूप में काम करने वाले वाली रुबीना अली मुंबई में की मलिन बस्तियों के खंडहर के बीच रहने को मजबूर हुई। भारत सरकार की 2011 की रिपोट्र के अनुसार 6.4 करोड़ से ज्यादा लोग मलिन बस्तियों में रहने को मजबूर हैं। मुम्बई की कुल आबादी 2.5 करोड़ लोगों में से 42 फीसद मलिन बस्तियों में रहते हैं।
प्रवासन
लगभग 70 फीसद भारतीय आज भी ग्रामीण इलाकों में निवास करती हैं। हर साल 10 लाख लोग काम की तलाश में शहरों में चले जाते हैं। भारतीय गणितज्ञ केएस जेम्स का कहना है कि यह स्थिति आगे भी जारी रहने की उम्मीद है, क्योंकि ग्रामीण इलाकों के कृषि संकट की स्थिति में सुधार की गुजाइश नहीं है।
शहरीकरण से समानता को बढ़ावा
शहरीकरण ने कई समस्याओं को पैदा किया है लेकिन इसने अमीर और गरीब के बीच समान अवसर और भाव को भी बढ़ाने में मदद की है। यह स्थिति आज भी गांवों में उपलब्ध नहीं है। शहरों में कमजोर तबकों के लिए शिक्षा और नौकरी के अधिक अवसर मुहैया उपलब्ध हैं। साक्षरता दर में तेजी से बढ़ोतरी करते हुए 2011 तक 74 फीसद तक पहुंचाने में भूमिका निभाई है। प्रजनन दर स्वास्थ्य सुविधाओं पर भी असर पड़ा है। महिलाओं की कुल वर्कफोर्स में भागीदारी बढ़ी है।
सरकारी नीतियां
1950 में शुरू हुई पंचवर्षीय योजना ने गांवों के बदले शहरों में विकास पर जोर दिया। 2017 में समाप्त वित्तीय वर्ष में शहरों में रेलवे, राष्ट्रीय राजमार्ग, बिजली व अन्य सुविधाओं पर एक ट्रिलियन डॉलर खर्च किया गया। गोल्डन चतुर्भुज योजना ने में दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता को जोड़ने का काम हुआ है। 5,846 किलोमीटर चार लेन की सड़कों को छह में बदला गया।
पर्यावरण क्षरण
तेजी से बढ़ती आबादी, औद्ध्योगिकीकरण से प्राकृतिक संसाधन तेजी से गिरावट जारी है। भारत भूजल का दोहन करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा राष्ट्र है। आज भी 60 फीसद कृषि कार्य और 85 फीसद पेयजल का स्रोत भूजल है। गांवों में किसानों को भूजल संकट तो शहरी लोगों को पेयजल का संकट सामाजिक समस्याओं के साथ हिंसा का रूप भी धारण करने लगी है।
Updated on:
14 Aug 2017 12:47 pm
Published on:
13 Aug 2017 03:57 pm
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