
आजादी के 70 सालों में भारतीय आबादी में जिस गति से बढ़ोतरी हुई उसी गति से भारत का औद्योगीकरण और शहरीकरण भी हुआ हैा दुनिया की कुल आबादी का 18 फीसद आबादी भारतीयों की है। अभी भी 68 से 70 फीसद आबादी गांवों में निवास करती है। शहरी अबादी में बढ़ोतरी गांवों में शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन और रोजगार के अवसर न होने की वजह से हुई है। पलायन की ये गति आज भी जारी है।
प्रवासन से शहरों में भी समस्याएं
प्रवासन सिलसिला अंग्रेजों के समय ही शुरू हो गया था। यह आजादी के 70 सालों में गांवों से शहरों की ओर प्रवासन एक स्थायी ट्रेंड हो गया है। प्रवासन से शहरों में भी कई तरह की समस्याएं उठ खड़ी हुई हैं। अब इस बात पर जोर दिया जाने लगा है कि क्यों ने गांवों विकास कर प्रवासन की गति को नियंत्रित किया जाए। लेकिन ऐसा तभी हो पाएगा जब आप ग्रामणी क्षेत्रों क आधारभूत ढांचों के साथ युवाओं के रोजगार के अवसर भी वहीं पर पैदा करने पर जोर दिया जाए। यह काम अभी तक संभव नहीं हो सका है। किसानों के जोत का आकार छोटा हो गया है। स्थानीय स्तर पर कुटीर उद्योगों को बढ़ावा नहीं मिला। परिणाम यह निकला कि लोग पलायन करने को मजबूर हुए।
आजादी के बाद शहरीकरण, औद्योगीकरण की प्रक्रिया में रोजगार के अवसर गांवों में पैदा न होकर शहर में पैदा हुए। इसका परिणाम यह निकला कि देश भर में अंतरराज्यीय प्रवासन को बढ़ावा मिला। रोजी रोटी के लिए लोग शहर की ओर भागने लगे और आज के दिन शहरी आबादी की हिस्सेदारी बढ़कर करीब 32 फीसद हो गया है। दशकों से जारी इस प्रवासन का अब राजनीतिक और सामाजिक असर भी दिखाई देने लगा है। अभी तक प्रवासन को सामान्य प्रक्रिया माना जाता रहा लेकिन अब ये शहरों में विवाद का मुद्दा बनता जा रहा है।
स्थानीय हिस्सेदारी बनी विवाद का कारण
विवाद इसलिए कि जो लोग गांव से शहर पहुंचे वे गांव वापस नहीं आए। जिस शहर में गए वहीं पर अपना ठिकाना बना लिया। ठिकाना बनाने तक स्थानीय और बाहरियों के बीच सामान्य स्थिति बनी रही। लेकिन जैसे ही उन्होंने स्थानीय हिस्सेदारी की मांग तो यह विवादों का कारण बनने लगा। ऐसा इसलिए हो रहा है कि प्रवासन के बाद देश के विभिन्न शहरों मे स्थायी निवास बना लेने के बाद वे लोग अब स् राजनीति स्थायी भागीदारी की भी मांग करने लगे हैं। प्रवासन की इस प्रक्रिया ने क्षेत्रवाद और भाषाई अस्मिता के सवाल को फिर से जिंदा कर दिया है। मुम्बई चौपाटी पर छठ पूजा जोरदार तरीके से होना और दिल्ली में छठ के अवसर पर सरकारी आवकाश की व्यवस्था डेमोग्रफिकल बदलाव का ही प्रतीक है। महाराष्ट्र , असम, दिल्ली दार्जिलिंग, पंजाब के कई शहरों में ये मुद़दे अब टकराव के कारण भी बनने लगे हैं। मुम्बई, नागपुर, थाणे, दिल्ली गुड़गांव, फरीदाबाद, नोएडा, बोकारो, जमशेदपुर, रांची, गाजियाबाद, बेंगलूरु, चंडीगढ़, लुधियाना, कोलकाता, हैदराबाद, सूरत, अहमदाबाद, चेन्नई, जम्मू जैसे शहरों में राजनीतिक सहभागिता की समस्या स्थानीय और बाहरियों के बीच हेयरलाइन डिस्प्यूट की तरह काम करने लगा है। हालांकि प्रवासन ने देश के कई शहरों को बहु संस्कृतियों वाला शहर का रूप भी दिया है।
इतना ही नहीं इन शहरों में रहने वो प्रवासियों ने अपनी सांस्कृतिक, भाषाई छाप भी छोड़ी है। स्थानीय और बाहरी को लेकर आंदोलन भी शुरू हो गए हैं। जैसे महराष्ट्र में मराठी, कोलकाता में बंगाली अस्मिता की आवाज। दार्जिलिंग में गोरखालैंड, दिल्ली में स्थानीय बनाम पूर्वांचली जैसे मुद़दे उभरकर सामने आने लगे हैं। जननांकीय प्रभाव का सबसे ज्यादा असर यह देखने को मिला है कि प्रवासियों ने अब अपने में से ही किसी एक को राजनीतिक प्रतिनिधि बनाने पर जोर देने लगे है इन शहरों में सत्ता का संतुलन भी बिगड़ने लगा है। अब सरकार के समक्ष चुनौती यह है कि वर्तमान स्थितियों को देखते हुए सभी बहुलतावादी समाज के विभिन्न संस्कृतियों और समुदायों के लिए संतुलन कैस स्थापित करे और सबके लिए समान अवसर कैसे पैदा हो।
2001 से 2011 के दरम्यान आबादी में बढ़ोतरी 18.14 करोड़
ग्रामीण - 9.04 करोड़
शहरी - 9.1 करोड़
शहरीकृत क्षेत्र में बढ़ोतरी
2001 - 27.81
2011 - 31.16
- 2011 में पहली बार ग्रामीण आबादी की तुलना में शहरी आबादी में स्पष्ट रूप से ज्यादे संख्या में बढ़ोतरी हुई।
आजादी के तत्काल बाद क्यों हुआ श्रमशक्ति का तेजी से घरेलू प्रवासन
आजादी के बाद श्रमशक्ति का प्रवासन कई कारणों से हुआ। इसके देश का विभाजन, शहरीकरण, औद्योगीकरण, रोजगार के अवसरों की उपलब्धता, स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन जैसी सुविधाओं की उपलब्धता प्रमुख कारण बने। रोजगार के क्षेत्र में अवसरों की उपलब्धता प्रवासन के लिए सबसे प्रमुख कारक बनकर उभरा।
पहला
- 1.44 करोड़ लोगों का भारत-पाक से मानव इतिहास का सबसे बड़ा प्रवासन
- 73 लाख हिंदू और सिख पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान से भारत में आए और स्थानीय श्रमशक्ति में शामिल हुए। ये लोग जालंधर, लुधियाना, अमृतसर, दिल्ली, वेस्ट यूपी, कोलकाता, मुम्बई, जम्मू, अलवर, गुड़गांव, पटना सहित देश के अन्य शहरों में शिफ्ट हो गए। इनमें से कुछ शहरों में पुनर्वास योजना के तहत भी लोगों को स्थायी रूप से बसाने का काम किया गया।
दूसरा
- औद्योगिकीकरण कोलाकाता, मुम्बई, जमशेदपुर, बोकारो, धनबाद, राउरकेला, भिलाई, लुधियाना आदि शहरों में जूट, इंजीनियरिंग गन्ना उद्योगों की वजह से।
- रोजगार हासिल करने के मकसद से आजादी के तत्काल बाद करीब 80 फीसद माइग्रेशन इन्हीं क्षेत्रों में हुआ।
- कोयला खादानों में प्रमुख रूप से बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गोवा, मध्य प्रदेश पंजाब, उड़ीसा और मद्रास व दक्षिण भारत के राज्यों से लोग रोजगार की तलाश में आए और बाद में स्थायी रूप से वहीं बस गए।
- इसी तरह बिहार और उत्तर प्रदेश शुगर फैट्रियों में भी अंतरराज्यीय स्तर पर लोग रोजगार के लिहाज से पहुंचे।
- कोलार गोल्ड क्षेत्र में मद्रास और आंध्र प्रदेश के लोगों को सबसे ज्यादा रोजगार मिला।
- जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के लोग अस्थायी रूप से रोजगार के लिए इन शहरों में पहुंचे।
1980 और 1990 के दशक के बाद से अब तक
- 2001 की जनगणना के अनुसार शहरीकरण औद्योगीकरण के दौर में कुल श्रमशक्ति में 33 फीसद लोग बाहरी थे। इनमें से 42.3 फीसद लोग अंतरराज्यीय प्रवासी शामिल थे। 1991 में यह 27.4 फीसद ही था।
- मुम्बई, दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, लुधियाना और बाद में सूरत, अहमदाबाद, बेंगलूरु, हैदराबाद, चंडीगढ़, गुड़गांव रोजगार के अवसरों की वजह से प्रवासी लोगों को बड़ा ठिकाना बना।
- इन शहरों में कार्यरत करीब 10 करोड़ इंटर-स्टेट प्रवासियों में से 2 करोड़ प्रवासी गांवों से शहर पहुंचने वालों में शामिल हैं।
Updated on:
13 Aug 2017 03:16 pm
Published on:
13 Aug 2017 03:15 pm
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