
नई दिल्ली।भारतीय सेना की ताकत बढ़ाने के लिए एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइल की बढ़ी डील की गई थी, लेकिन अब यह डील विवादों से घिरती नजर आ रही है। प्रतिद्वंदियों ने आरोप लगाया है कि इस डील के लिए जरूरी तकनीकी शर्तों को पूरा नहीं किया यहा है, लेकिन इसके बावजूद एक रूसी सिस्टम को इसके लिए योग्य माना गया है।
क्षमता साबित करने में नाकाम
ऐसी बात भी सामने आ रही है कि यह मिसाइल ट्रायल्स के दौरान अपनी क्षमता साबित करने में नाकाम रही थी। आपको बता दें कि 27,000 करोड़ रुपए की लागत वाली वेरी शॉर्ट रेंज एयर डिफेंस मिसाइलों को खरीदने की योजना 2010 में यूपीए सरकार के शासनकाल में शुरू की गई थी।
कई विवाद सामने आए
डील होने के बाद से ही इससे जुड़े कई विवाद सामने आए थे। इस मिसाइल के लिए फ्रांसीसी, स्वीडिश और रूसी कंपनियां ने भी दावेदारी पेश की थीं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, पांच सालों तक ट्रायल होने के बाद सेना ने जनवरी में आईजीएलए एस सिस्टम को योग्य माना।
प्रतिद्वंदियों ने जताया विरोध
सेना द्वारा इसे योग्य माने जाने बाद कॉम्पिटीटर्स ने रक्षा मंत्रालय को लेटर लिख कर इसका विरोध जताया। कॉम्पिटीटर्स ने आरोप लगाया कि सिस्टम जरूरी शर्तों को पूरा नहीं करता है। उनके अनुसार आईजीएलए सिस्टम को सही ठहराने के लिए नियमों को बदला गया है।
1980 से हो रहा है इस्तेमाल
गौरतलब है कि वेरी शॉर्ट रेंज एयर डिफेंस मिसाइलों को खरीदने की प्रक्रिया साल 1999 में शुरू हुई थी। जब पहली बार रूसी आईजीएलए एम सिस्टम को बदलने के लिए बात सामने आई। बता दें कि आईजीएलए एम सिस्टम को भारतीय सेना 1980 से इस्तेमाल कर रही थी।
2010 तक भी नहीं शुरू हो पाई प्रक्रिया
वहीं, हवा में शॉर्ट रेंज टार्गेट को गिराने की क्षमता रखने के बावजूद भी इस मिसाइल की डील की प्रक्रिया साल 2010 तक शुरू नहीं हो पाई। 2010 में इसके लिए ग्लोबल टेंडर जारी किए गए।
Published on:
17 May 2018 10:14 am
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