
अटल के करिश्माई व्यक्तित्व का कायल था विपक्ष भी, इन बातों ने उन्हें बना दिया महान
नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर पूरे देश में शोक की लहर है। उनके करिश्माई व्यक्तित्व को लेकर उन्हें आज भी लोग याद करते हैं। उनसे मिलने वाला हर शख्त आज उन्हें याद कर रहा है। उनके भाषण और कविताएं लोगों के दिल में अभी भी ताजा हैं। पीएम मोदी ने कहा है कि वाजपेयी भले ही हमें छोड़कर चिरनिद्रा में लीन हो गए हों लेकिन उनकी वाणी, उनका जीवन दर्शन सभी भारतवासियों को हमेशा प्रेरणा देता रहेगा। उनका ओजस्वी, तेजस्वी और यशस्वी व्यक्तित्व सदा देश के लोगों का मार्गदर्शन करता रहेगा। उनके व्यक्तित्व की कुछ बाते जो आज भी लोगों को प्रभावित करती हैं।
दुश्मन को भी साथ लेकर चलने की कला
अटल उदारवादी विचारधारा का अनुसरण करते थे। वह किसी भी पार्टी के अच्छे विचारों का समर्थन करते थे। कश्मीर के हल के लिए पाकिस्तान और अलगाववादियों से बातचीत इसका उदाहरण था। उन्होंने लाहौर तक बस यात्रा कर पाक के पूर्व पीएम नवाज शरीफ से बातचीत की पहल की थी। उनक कहना था कि किसी बातचीत में हमें सबसे आगे इंसानियत को आगे रखना चाहिए। अगर किसी बातचीत से इंसानियत को फायदा पहुंचता है तो इसके लिए हमेश तैयार रहना चाहिए।
विरोधियों को भी साथ लेकर चलते थे
अटल बिहारी ऐसे व्यक्तित्व के धनी थे कि उनसे विरोधी भी प्रभावित हो जाते थे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता उन्हें याद कर कहते हैं कि हमें उनकी पार्टी के विचारों से मतभेद तो था पर अटल जी से कभी भी अलगाव महसूस नहीं किया। वह एक लोकप्रिया नेता थे,उनकी बातों में किसी के लिए कटुता नहीं रहती थी। विपक्षी पार्टियों के नेताओं की वह आलोचना तो करते थे साथ ही अपनी आलोचना सुनने का भी साहस रखते थे। ऐसे में विरोधी भी उनकी बात को बड़ी तल्लीनता से सुनते थे।
अटल जी का हिंदी प्रेम
अटल बिहारी वाजपेयी ने हिंदी को विश्वस्तर पर मान दिलाने के लिए काफी प्रयास किए। वह 1977 में जनता पार्टी की सरकार में विदेश मंत्री थे। संयुक्त राष्ट्रसंघ में उनके द्वारा दिया गया हिंदी में भाषण उस समय काफी लोकप्रिय हुआ था। उनके द्वारा हिंदी के चुने हुए शब्दों का ही असर था कि यूएन के प्रतिनिधियों ने वाजपेयी की प्रशंसा की थी और खड़े होकर तालियां बजाईं थीं। इसके बाद कई बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर अटल ने हिंदी में दुनिया को संबोधित किया।
शब्दों के जादूगर थे
उन्हें शब्दों का जादूगर माना गया। विरोधी भी उनकी वाकपटुता और तर्कों के कायल रहे। 1994 में केंद्र की कांग्रेस सरकार ने संयुक्तराष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत का पक्ष रखने वाले प्रतिनिधिमंडल की नुमाइंदगी अटल जी को सौंपी थी। किसी सरकार का विपक्षी नेता पर इस हद तक भरोसे को पूरी दुनिया में आश्चर्य से देखा गया था।
किसी से भेदभाव नहीं करते थे
वह किसी से भेदभाव न करते हुए सिर्फ का साथ देते थे। गुजरात दंगों के समय सीएम रहे नरेंद्र मोदी के लिए उनका यह बयान आज भी मील का पत्थर बना हुआ है- मेरा एक संदेश है कि वह राजधर्म का पालन करें। राजा के लिए,शासक के लिए प्रजा में भेद नहीं हो सकता। न जन्म के आधार पर,न जाति के आधार पर और न संप्रदाय के आधार पर।
Published on:
17 Aug 2018 08:53 am
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