
बीती यादें: जब अटल ने अमरीका में बीफ की ओर ध्यान दिलाने पर कहा- 'ये गायें इंडिया की नहीं अमरीका की है'
नई दिल्ली। इन दिनों पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी मौत को मात देने में लगे हैं। इससे पहले भी वो कई बार मौत को मात दे चुके हैं। लेकिन इस बार उनकी स्थिति कुछ ज्यादा ही नाजुक है। 93 साल के हो चुके पूर्व पीएम की तबियत पिछले कुछ सालों से ठीक नहीं है। आज भी वो एम्स में असहज नहीं है क्योंकि डिमेंशिया की वजह से उन्हें कुछ नहीं पता चल रहा है कि उनके साथ हो क्या रहा है। इसी तरह वो अपने वाणी और वाकपटुता से भी हर परिस्थितियों को अपने अनुकूल करने में भी माहिर रहे हैं। इसका एक उदाहरण उन्होंने वर्षों पूर्व अमरीका दौरे के दौरान भी दिया था। जब प्रतिनिधिमंडल शामिल एक खास व्यक्ति ने रात्रि भोज के दौरान टेबल पर परोसे गए अहज व्यंजनों की ओर वाजपेयी का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने उक्त व्यक्ति को वाकपटुता और स्थितियों को अपने अनुकूल कर लेने की कला का परिचय देकर अचंभे में डाल दिया और टेबल पर अपनी पसंद की चीजों को ही ग्रहण किया।
सरकारी भोज में हुआ गोमांस से सामना
दरअसल, विजय त्रिवेदी ने अपनी पुस्तक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ विचारक और पांचजन्य के पूर्व संपादक देवेंद्र स्वरूप के हवाले से उनके बारे में एक किस्से का उल्लेख किया है। स्वरूप के मुताबिक एक बार अमरीका जाने वाले एक प्रतिनिधिमंडल में अटल बिहारी वाजपेयी के साथ कांग्रेस की नेता मुकुल बनर्जी भी थीं। एक सरकारी भोज में बीफ यानी गोमांस भी परोसा जा रहा था। बनर्जी वाजपेयी के बगल वाली सीट पर बैठी थीं। उन्होंने जब वाजपेयी का इस ओर ध्यान दिलाया तो उनका कहना था- ये गायें इंडिया की नहीं, अमेरिका की हैं।
एम्स में ही जमा ली बैठक
अटल के साथ रहने वाले लोग बखूबी जानते हैं कि उन्हें खाने-पीने का बड़ा शौक था। समय-समय पर वो सहयोगी नेताओं के साथ खाने-पीने के लिए बैठकबाजी किया करते थे। यह सिलसिला पीएम बनने के बाद तक चलता रहा। यह बात उन दिनों की है जब देश में आपातकाल लगा था। उन्हें स्वास्थ्य कारणों से बंगलुरु जेल से दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स में लाया गया। अभी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता डीपी त्रिपाठी उस वक्त वाजपेयी के बगल वाले कमरे में थे। एक दिन वाजपेयी ने उन्हें बुलाया और पूछा कि देवी प्रसाद शाम के लिए क्या व्यवस्था है। इसके बाद त्रिपाठी ने पास के पीसीओ से अपनी किसी परिचित को फोन करके अच्छी व्हिस्की की व्यवस्था की। वाजपेयी ने चिकन और खाने की चीजों का भी ऐसे ही इंतजाम किया और शाम को एम्स में ही बैठक जमा ली।
तत्काल लगवाई नेहरू की तस्वरी
इसी तरह आपातकाल के बाद 1977 में बनी मोरारजी देसाई की सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी विदेश मंत्री बने। विदेश मंत्री बनने के बाद पहले दिन विदेश मंत्रालय पहुंचे तो उन्होंने देखा कि दफ्तर की एक दीवार से कुछ गायब है। वाजपेयी ने अपने सचिव से कहा कि यहां तो पंडित जवाहरलाल नेहरू की तस्वीर लगी होती थी। पहले भी कई बार मैं इस दफ्तर में आया हूं, अब कहां गई। पता चला कि जब गैर कांग्रेसी सरकार बनी तो विदेश मंत्रालय के अफसरों को लगा कि जनसंघ से आने वाले नए विदेश मंत्री को नेहरू की तस्वीर अच्छी नहीं लगेगी। इसलिए उन्हें खुश करने के लिए अधिकारियों ने नेहरू की तस्वीर हटा दी थी। इसके बाद वाजपेयी ने विदेश मंत्रालय के अफसरों को जितनी जल्दी हो सके उस तस्वीर को फिर से लगाने का आदेश दिया।
Published on:
16 Aug 2018 10:17 am
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