scriptमोहन भागवत की जीवनीः अब संघ प्रमुख के हाथ में मोदी का भविष्य, 2014 में नहीं थे पहली पसंद | Atals Biography writer-Mohan Bhagwat can change Narendra Modi's future | Patrika News

मोहन भागवत की जीवनीः अब संघ प्रमुख के हाथ में मोदी का भविष्य, 2014 में नहीं थे पहली पसंद

locationनई दिल्लीPublished: Oct 01, 2018 05:50:12 pm

‘2019 में चीजें अलग हो सकती हैं, 2014 चुनावों के लिए मोदी, भागवत की पहली पसंद नहीं थे।’

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मोहन भागवत की जीवनीः अब संघ प्रमुख के हाथ में मोदी का भविष्य, 2014 में नहीं थे पहली पसंद

नई दिल्ली। दिवंगत प्रधानमंत्री अटल वाजपेयी की जीवनी लिखने वाले किंगशुक नाग ने अपनी नई किताब में एक बड़ा बयान दिया है। उन्होंने दावे के साथ कहा गया है- ‘नरेंद्र मोदी का भविष्य मोहन भागवत के हाथों में है।’ गौरतलब है कि नाग का यह दावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की जीवनी ‘मोहन भागवतः इंफ्लूएंसर इन चीफ’ में सामने आया है। जीवनी में लिखा गया है कि 2014 में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता केवल और केवल आरएसएस की वजह से मिली और अगर भाजपा 2019 में भी जीत हासिल करती है तो वह भी आरएसएस की ही वजह से होगा। किंगशुक नाग इससे पहले आठ पुस्तकें लिख चुके हैं।
‘भाजपा को मोदी की लोकप्रियता से नहीं मिली सत्ता’

लेखक ने आरएसएस के वरिष्ठ सूत्रों के हवाले से लिखा है कि आरएसएस का पुख्ता यकीन है, ‘भाजपा को सत्ता न तो मोदी की लोकप्रियता से मिली है और न ही कांग्रेसनीत यूपीए सरकार की गड़बड़ियों से। बजाय इसके, यह पिछले वर्षों में आरएसएस के निरंतर किए कार्यों द्वारा बना सामाजिक बदलाव था, जिसने भाजपा के लिए माकूल माहौल तैयार किया। भागवत, मोदी को काबू में रखने में विश्वास रखते हैं।’ लेखक ने 240 पृष्ठों वाली किताब में लिखा है, ‘2019 में चीजें अलग हो सकती हैं, 2014 चुनावों के लिए मोदी, भागवत की पहली पसंद नहीं थे।’
मोदी के लिए ‘करो या मरो’ का था मुकाबला

आरएसएस ने मोदी को बतौर भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में इसलिए पेश क्योंकि उसे एहसास हो गया था कि वह ही एकमात्र शख्स हैं जो पार्टी की जीत की ओर ले जा सकते हैं। 2014 चुनाव से पहले आरएसएस को संदेह था कि भाजपा स्पष्ट जीत हासिल करेगी लेकिन प्रदर्शन उसकी अपेक्षाओं से कहीं ज्यादा बेहतर निकला।’ नाग ने कहा, ‘मोदी के लिए यह करो या मरो की लड़ाई थी, भागवत के लिए भी कुछ ऐसा ही था लेकिन कारण अलग अलग थे। मोदी के लिए यह जीत उनके राजनीतिक करियर और आकांक्षा के लिए सर्वोच्च जीत थी लेकिन भागवत के लिए हिंदू राष्ट्र की रचना के लिए यह जरूरी (लेकिन पर्याप्त नहीं) थी।’
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