देश और राज्यों के दूर-दराज क्षेत्रों से खबरें लाना और फिर उन्हें पाठकों तक पहुंचाना एक बहुत ही खर्चीला काम है। जब आप गूगल या फेसबुक पर इन खबरों को पढ़ते हैं तो निश्चित रूप से आपको जानकारी मिलती है और गूगल तथा फेसबुक को ट्रैफिक मिलता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जिन्होंने इन खबरों को लिखने पर मेहनत की है, उन्हें क्या मिलता है? ये बड़ी कंपनियां उन्हें नाम मात्र की राशि पकड़ा कर उनकी मेहनत से अपने बैंक बैलेंस बढ़ा रही हैं। इसी को रोकने के लिए हाल ही ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने एक कानून बनाया जिसके तहत टेक कंपनियों को अपने प्लेटफॉर्म पर खबरें दिखाने के लिए न्यूज पब्लिशर्स को पैसा देना होगा।
ऑस्ट्रेलिया सरकार के इस कदम के विरोध में फेसबुक ने वहां पर अपने सभी पेजेज को ब्लॉक कर दिया। इस पर सरकार ने दूसरे देशों का समर्थन जुटाने की कोशिशें शुरू की और मेहनत रंग भी लाई। आखिर में फेसबुक को झुकना पड़ा और सरकार के साथ समझौता करना पड़ा। इस पूरे झगड़े में दो बातें स्पष्ट रुप से सामने आईं, पहली - सोशल मीडिया कंपनियां बिना मेहनत किए, बिना एक रुपया खर्च किए दूसरों की खबरों से पैसा कमाना चाहती हैं, दूसरी - मीडिया इंडस्ट्री खासतौर पर प्रिंट मीडिया का अस्तित्व खतरे में है। अगर आंकड़ों पर एक नजर डाली जाए तो हम देखते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में न केवल भारत वरन दुनिया भर के लगभग हर देश में बहुत से अखबार और मैग्जीन्स बंद हो चुके हैं। ऐसे में सोशल मीडिया कंपनियों की इस तरह की प्रवृत्ति उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर देगी।
ऑस्ट्रेलिया के नए कानून से मिलेगी न्यूज इंडस्ट्री को ताकत
सरकार के बनाए नए कानून के अनुसार बिल पारित होने की तारीख से अगले 3 महीनों में यदि गूगल अथवा फेसबुक न्यूज पब्लिशर्स के साथ एक न्यायोचित समझौता नहीं कर पाते हैं तो ऑस्ट्रेलिया सरकार उनके विरुद्ध एक्शन ले सकती है। इस तरह ऑस्ट्रेलिया सरकार का यह नया कानून मीडिया इंडस्ट्री को बड़ी टेक कंपनियों के साथ मोलभाव कर अपनी खबरों की सही कीमत वसूलने की ताकत देता है।
उल्लेखनीय है कि न्यूज वेबसाइट्स को उनका हक दिलाने के लिए यूरोप में भी एक मुहिम छिड़ी हुई है और वहां की सरकारें इस मुद्दे पर ऑस्ट्रेलिया जैसा ही कानून बनाने पर भी विचार कर रही हैं। इस बात को लेकर पहले भी यूरोपियन देशों की सरकारें इन कंपनियों को झुकने पर मजबूर कर चुकी हैं।
सोशल मीडिया की ताकत, ट्रंप को भी कर दिया था बैन
आपको याद होगा कि हाल ही ट्वीटर ने भूतपूर्व अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तथा उनके समर्थकों के कई अकाउंट्स को बैन कर दिया गया था। हालांकि ट्रंप की हैसियत और ताकत इतनी ज्यादा है कि सोशल मीडिया के बैन किए जाने के बाद भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा। दुनिया भर की सरकारें सोशल मीडिया की इसी ताकत को कम करना चाहती हैं ताकि वो अपनी आजादी से काम कर सकें।
माइक्रोसॉफ्ट और दूसरी कंपनियों में हैं मतभेद
इस पूरी कहानी में गूगल, फेसबुक और ट्वीटर जैसी वेबसाइट्स जहां खुल कर सरकारों के खिलाफ सामने आ रही हैं वहीं माइक्रोसॉफ्ट सरकार के समर्थन में है। जब गूगल ने ऑस्ट्रेलिया में गूगल सर्च की सुविधा बंद करने की धमकी दी थी तब माइक्रोसॉफ्ट ने सरकार की ओर अपना मदद का हाथ बढ़ाया था। यहां यह देखना भी जरूरी है कि कंपनी चाहे गूगल हो, फेसबुक हो या माइक्रोसॉफ्ट, सभी का अंतिम लक्ष्य व्यापार और मुनाफा ही है।
Updated on:
24 Feb 2021 02:10 pm
Published on:
24 Feb 2021 01:58 pm