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भागवत से पहले RSS के इस नेता को भी रोका गया था तिरंगा फहराने से

लगभग 64 वर्ष पहले आरएसएस के एक अन्य नेता जो कश्मीर में अनुच्छेद 370 के सख्त खिलाफ थे, को लाल चौक पर तिरंगा फहराने से रोकने के लिए अरेस्ट किया गया था।

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Dr Shyama Prasad mukherjee

जन संघ के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी

नई दिल्ली: केरल में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने प्रशासन की रोक के बावजूद तिरंगा फहराया। यह तिरंगा उस स्कूल में फहराया गया जिस स्कूल को सरकार से सहायता मिलती है। आपको बता दें कि केरल में यह कानून लागू है कि किसी भी सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल में सरकार का प्रतिनिधि या सरकार का कर्मचारी ही सराकारी कार्यक्रमों में शामिल हो सकता है, कोई राजनीतिक व्यक्ति या राजनीतिक हस्ती नहीं। लेकिन आज से लगभग 64 वर्ष पहले आरएसएस के एक अन्य नेता डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी को कश्मीर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने को लेकर गिरफ्तार कर किया गया था। कई दिनों तक जेल में रहने के बाद रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मौत हो गई थी, जिसका खुलासा आज तक नहीं हो पाया है।

अनुच्छेद 370 के सख्त खिलाफ थे- डॉ मुखर्जी
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी अनुच्छेद 370 के सख्त खिलाफ थे। विडम्बना यह है कि तात्कालीन सत्ता के खिलाफ जाकर सच बोलने की जुर्रत करने वाले डॉ. मुखर्जी को इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी, और उससे भी बड़ी विडम्बना की बात ये है कि आज भी देश की जनता उनकी रहस्यमयी मौत के पीछे के सच को जान पाने में नाकामयाब रही है। डॉ. मुखर्जी इस प्रण पर सदैव अडिग रहे कि जम्मू एवं कश्मीर भारत का एक अविभाज्य अंग है। उन्होंने सिंह-गर्जना करते हुए कहा था कि, एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान, नहीं चलेगा- नहीं चलेगा। उस समय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 में यह प्रावधान किया गया था कि कोई भी भारत सरकार से बिना परमिट लिए हुए जम्मू-कश्मीर की सीमा में प्रवेश नहीं कर सकता।

बिना परमिट कश्मीर के लिए निकले थे- डॉ मुखर्जी
उन्होंने इस प्रावधान के विरोध में भारत सरकार से बिना परमिट लिए हुए जम्मू व कश्मीर जाने की योजना बनाई। इसके साथ ही उनका अन्य मकसद था वहां के वर्तमान हालात से स्वयं को वाकिफ कराना क्योंकि जम्मू व कश्मीर के तात्कालीन प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला की सरकार ने वहां के सुन्नी कश्मीरी मुसलमानों के बाद दूसरे सबसे बड़े स्थानीय भाषाई डोगरा समुदाय के लोगों पर असहनीय जुल्म ढाना शुरू कर दिया था। नेशनल कांफ्रेंस का डोगरा-विरोधी उत्पीड़न वर्ष 1952 के शुरूआती दौर में अपने चरम पर पहुंच गया था। डोगरा समुदाय के आदर्श पंडित प्रेमनाथ डोगरा ने बलराज मधोक के साथ मिलकर ‘जम्मू व कश्मीर प्रजा परिषद् पार्टी’ की स्थापना की थी। इस पार्टी ने डोगरा अधिकारों के अलावा जम्मू व कश्मीर राज्य का भारत संघ में पूर्ण विलय की लड़ाई, बिना रुके, बिना थके लड़ी। इस कारण से डोगरा समुदाय के लोग शेख अब्दुल्ला को फूटी आंख भी नहीं सुहाते थे।

जगह-जगह हुआ था जोरदार स्वागत
डॉ मुखर्जी बिना परमिट लिए हुए ही 8 मई, 1953 को सुबह 6:30 बजे दिल्ली रेलवे स्टेशन से पैसेंजर ट्रेन में अपने समर्थकों के साथ सवार होकर पंजाब के रास्ते जम्मू के लिए निकले। उनके साथ बलराज मधोक, अटल बिहारी वाजपेयी, टेकचंद, गुरुदत्त वैध और कुछ पत्रकार भी थे। रास्ते में हर जगह डॉ मुखर्जी की एक झलक पाने एवं उनका अविवादन करने के लिए लोगों का जनसैलाब उमड़ पड़ता था।

गिरफ्तार करने की थी तैयारी
डॉ मुखर्जी ने जालंधर के बाद बलराज मधोक को वापस भेज दिया और अमृतसर के लिए ट्रेन पकड़ी। ट्रेन में एक बुजुर्ग व्यक्ति ने गुरदासपुर (जिला, जिसमें पठानकोट आता है) के डिप्टी कमिश्नर के तौर पर अपनी पहचान बताई और कहा कि ‘पंजाब सरकार ने फैसला किया है कि आपको पठानकोट न पहुंचने दिया जाए। मैं अपनी सरकार से निर्देश का इंतज़ार कर रहा हूं कि आपको कहां गिरफ्तार किया जाए?’ हैरत की बात यह निकली कि उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया, न तो अमृतसर में, न पठानकोट में और न ही रास्ते में कहीं और, अमृतसर स्टेशन पर करीब 20000 लोग डॉ मुख़र्जी के स्वागत के लिए मौजूद थे।

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