scriptभीमा कोरेगांव केस : सामाजिक कार्यकर्ता आनंद की सुनवाई 22 फरवरी तक स्थागित | Bhima Koregaon case: Hearing of worker Anand lodged till 22nd February | Patrika News

भीमा कोरेगांव केस : सामाजिक कार्यकर्ता आनंद की सुनवाई 22 फरवरी तक स्थागित

locationनई दिल्लीPublished: Feb 11, 2019 08:31:42 pm

Submitted by:

Shivani Singh

बॉम्बे हाई कोर्ट का कहना है कि ‘‘अगर आनंद तेलतुम्बडे को पुणे पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जाता है, तो उन्हें एक या अधिक ज़मानत के साथ 1 लाख रुपये के बांड पर रिहा किया जाना चाहिए।इसके अलावा उसे जांच के लिए 14 और 18 फरवरी को पुणे पुलिस के सामने पेश होना होगा।’’

आनंद तेलतुम्बडे

आनंद तेलतुंबड

नई दिल्ली- बॉम्बे हाईकोर्ट ने भीमा कोरेगांव मामले के आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बडे से जुड़े मामले की सुनवाई 22 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी। बॉम्बे हाई कोर्ट का कहना है कि ‘‘अगर आनंद तेलतुम्बडे को पुणे पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जाता हैं, तो उन्हें एक या अधिक ज़मानत के साथ 1 लाख रुपये के बांड पर रिहा किया जाना चाहिए।इसके अलावा उसे जांच के लिए 14 और 18 फरवरी को पुणे पुलिस के सामने पेश होना होगा।’’
बतातें चलें कि भीमा कोरेगांव मामले के आरोपी आनंद तेलतुम्बडे को एक फरवरी को पुणे पुलिस ने गिरफ्तार किया था। आनन्द पर गैर कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम से संबंधित धाराओं के तहत मामले दर्ज हैं।
https://twitter.com/ANI/status/1094942158740705280?ref_src=twsrc%5Etfw
कौन है आनंद तेलतुंबड
आनंद तेलतुंबड़े स्तंभकार, शिक्षाविद् और मानव अधिकार कार्यकर्ता होने के अलावा लेखक भी है। समकालीन जन आंदोलनों पर लिखते हैं। इसके साथ ही तमाम पत्रिकाओं में भी लिखते हैं। आनंद पेशे से मैनेजमेंट इंजीनियर हैं और गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में पढ़ाते हैं। इन्होंने बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की पोती से विवाह किया हैं।
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इसलिए जाना जाता है भीमा कोरेगांव

महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव को पेशवाओं के नेतृत्व वाले मराठा साम्राज्य और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुए युद्ध के लिए जाना जाता हैं। बताया जाता है कि कहानी 201 साल पहले 1818 में हुए एक युद्ध की है। मराठा सेना यह युद्ध अंग्रेजों से पराजित हो गई थी। जानकार दावा करते है कि ईस्ट इंडिया कंपनी को महार रेजीमेंट के सैनिकों की बहादुरी की वजह से यह जीत हासिल हुई थी। इसलिए यह जगह पेशवाओं पर महारों अर्थात् अनुसूचित जातियों की जीत के एक स्मारक के तौर पर स्थापित हो गई।
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