
शोध : हवा में नमी बढ़ने के साथ-साथ घटता है कोरोना संक्रमण, पैटर्न इस ओर कर रहा इशारा
वीरेंद्र माने, (पुणे के शोधार्थी)
नई दिल्ली। देश में आमतौर पर वातावरण में नमी बढऩे के साथ मौसमी बीमारियां बढऩे लगती हैं। इस आम धारणा के विपरीत इन्फ्लूऐंजा जैसी मौसमी बीमारियां, जिस प्रकार के विषाणु से होती हैं, वे आमतौर पर वातावरण में नमी बढऩे के साथ कम होती हैं और नमी कम होते ही बढ़ती हैं। कोरोना संक्रमण का फैलाव नमी बढऩे के साथ कम होता है। यह बात अटपटी लगे लेकिन पुणे के शोधार्थी वीरेंद्र माने की रिसर्च में सामने आई है। माने ने अपना शोधपत्र एक प्रतिष्ठित जर्नल को प्रस्तुत किया है।
इस शोध पर विचार चल रहा है। कोरोना संक्रमण के ट्रेंड पर अब तक कई तरह के शोध हो चुके हैं। माने का शोध इस महामारी को समझने और उससे बचाव की तैयारी करने में अहम साबित हो सकता है। हालांकि अभी शोधकार्य जारी है और अंतिम नतीजे सामने आने बाकी हैं।
भारत : कोरोना केस, नमी के स्तर के हिसाब से उतार-चढ़ाव
गत अक्टूबर तक मानसून खत्म हो गया और नमी कम होने लगी। उसके तीन सप्ताह बाद (16 से 26 नवंबर) संक्रमण तेज हुआ।
सितंबर मध्य में दूसरी लहर का पीक!
माने के अनुसार, भारत में जनवरी के मध्य से जून-जुलाई तक सबसे कम नमी होती है। उत्तर और उत्तर-पश्चिमी राज्यों में मानसून के जाने के बाद व ठंड शुरू होने से पहले कुछ सप्ताह के लिए कम होती है। इसी कारण इन राज्यों में गत वर्ष दो बार केस बढ़ते दिखाई दिए थे। अध्ययन में सामने आया कि गत बार की तरह भारत में कोरोना की दूसरी लहर का पीक मध्य सितंबर में आ सकता है। दिसंबर-जनवरी में संक्रमण की रफ्तार सबसे कम हो सकती है।
इस वर्ष भी नमी कम होते ही बढ़ा संक्रमण... जनवरी 2021 में वातावरण में नमी कम होने के साथ ही कोरोना केसमें फिर तेजी आनेे लगी। जबकि, जनवरी के अंत व फरवरी की शुरुआत में नए केस 9 हजार प्रतिदिन तक गिर गए थे।
गत वर्ष नमी बढ़ी, केस घटे-
देश में गत सितंबर के मध्य से नए केस कम होने शुरू हो गए। क्योंकि तब नमी का स्तर भी पीक पर था। माने की परिकल्पना (हाइपोथिसिस) के अनुसार नमी के स्तर का असर 8-10 हफ्ते के बाद संक्रमण के मामलों में दिखता है।
Published on:
22 May 2021 12:13 pm
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