
नई दिल्ली.
मार्डना वैक्सीन से शरीर में विकसित एंटीबॉडी कम से कम एक साल तक कोरोना के संक्रमण से बचाव करने में सक्षम होंगे। यह दावा वैक्सीन बनाने वाली कंपनी मॉडर्ना ने किया है। यही नहीं कोरोना का ब्रिटेन व साउथ अफ्रीका में पाए गए नए स्ट्रेन पर भी यह वैक्सीन उतनी ही प्रभावी होगी।
इसके अलावा वैक्सीन का एफिकेसी रेट 94.1 फीसदी पहुंच गया है। इससे वैक्सीन ज्यादा सुरक्षित व प्रभावी मानी जा रही है। गौरतलब है कि मॉडर्ना की यह वैक्सीन एमआरएनए यानी मोड ऑफ राइबो न्यूक्लिक एसिड की आधुनिक तकनीकी पर बनी है। कंपनी 2021 के अंत तक 60 करोड़ से 100 करोड़ वैक्सीन डोज का उत्पादन करेगी।
क्यों है खास
मॉडर्ना कंपनी के सीईओ स्टैफनी बैंसल ने कहा कि आरएनए वैक्सीन mRNA -1273 अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी पर बनी है। इसमें कोरोना वायरस की बाहरी परत की नकल कर शरीर में कोरोना वायरस के प्रति तेजी से प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में सक्षम है। ऐसे में जब कोरोना वायरस जब शरीर में प्रवेश करेगा तो शरीर पहले से तैयार इम्युनिटी कोरोना वायरस के हमले को निष्क्रिय या कमजोर कर देगी। उनका कहना है कि कोरोना के हर प्रकार के स्ट्रेन पर वैक्सीन टेस्ट किया गया। बैंसल ने कहा कि उम्मीद है कि हमारी टीम 60 करोड़ वैक्सीन की खुराक तैयार कर लेंगे। हम समय पर पूरी दुनिया को वैक्सीन दे पाएंगे। एडवांस परचेज एग्रीमेंट व मांग के अनुसार मॉडर्ना अपनी वैक्सीन से अगले एक साल में 11.7 बिलियन डॉलर्स यानी 85,837 करोड़ रुपए की आमदनी करेगा।
भारत में क्या उम्मीद
मॉडर्ना भारत में अपनी वैक्सीन बनाना चाहती है। हालांकि इसके अलावा कई और कंपनियां भी दौड़ में हैं। यदि भारत में बनती है तो स्पष्ट है कि कीमत कम होगी। भारत में एमआरएनए टेक्नोलॉजी के टीकों का उत्पादन करना आसान है। यदि सबकुछ ठीक रहा तो भारत में 2-3 माह में मॉडर्ना वैक्सीन का उत्पादन शुरू हो सकता है।
ब्रिटेन में भी मिल चुकी मंजूरी
ब्रिटेन के नियामक प्राधिकरण ने 5 दिन पहले ही तीसरे वैक्सीन के रूप में इसको मंजूरी दी है। ब्रिटेन ने मॉडर्ना की 70 लाख डोज का ऑर्डर किया है।
वैक्सीन फैक्ट फाइल
- 30 हजार से अधिक पर मॉडर्ना वैक्सीन का परीक्षण
- 95 फीसदी क्लीनिकल ट्रायल में सुरक्षित पाया गया
- 03 टीके बायोएनटेक, फाइजर, मॉडर्ना एमआरएनए तकनीकी पर
- -20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर रखना जरूरी होगा
सांस रोकने से कोरोना संक्रमण का खतरा ज्यादा
सांस रोककर रखने से कोरोना के संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। यह आइआइटी मद्रास में हुए एक अध्ययन में बात सामने आयी है। अंतरराष्ट्रीय जर्नल फीजिक्स ऑफ फ्लूड्स में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं के अनुसार प्रयोगशाला में सांस लेने की आवृत्ति का मॉडल तैयार किया। इसमें पाया गया कि कम सांस लेने से वायरस फेफड़ों में ज्यादा समय तक रह पाता है, जिसके कारण उसके वहां रुकने के कारण संक्रमित करने की आशंका बढ़ जाती है।
फेफड़े की संरचना भी प्रभावित
एप्लाइड मैकेनिक्स विभाग के प्रोफेसर महेश पंचाग्नुला का कहना है कि स्टडी में शारीरिक प्रक्रिया का अध्ययन किया गया। इसमें पाया गया कि सांस रोककर रखने अथवा धीमी लेने से कैसे एयरोसोल फेफड़ों के भीतर पहुंचते हैं और वायरस कैसे नुकसान पहुंचाता है। यह फेफड़े की संरचना को भी प्रभावित करता है।
तीन से छह महीने सुरक्षा कवच
भारत में आपातकालीन उपयोग की मंजूरी पाने वाली दोनों वैक्सीन कोविशील्ड और कोवैक्सीन को लेकर दावा किया जा रहा है कि यह तीन से छह महीने का सुरक्षा कवच कोविड के खिलाफ देंगी। हालांकि अभी दोनों ही वैक्सीन का क्लीनिकल डाटा आना बाकी है। जबकि मॉडर्ना ने अपना क्लीनिकल ट्रायल पूरा होने के बाद कम से कम एक साल तक सुरक्षा मिलने का दावा किया है।
Published on:
13 Jan 2021 09:29 am
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