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6 फीट की दूरी नहीं पर्याप्त, कोरोना से बचना है तो 20 फुट तक दूरी बनाए, नए शोध में हुआ खुलासा

locationनई दिल्लीPublished: May 28, 2020 11:26:35 am

Submitted by:

Ruchi Sharma

Highlights
-इसके अलावा कोरोना वायरस सिर्फ खांसने या छींकने से फैलता है
-बताया गया था कि कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए एक-दूसरे से छह फुट की दूरी बनाने जरूर है
-पर इस बीच एक अध्ययन में दावा किया गया है कि एक-दूसरे से छह फुट की दूरी बनाने का नियम नाकाफी है, क्योंकि यह जानलेवा वायरस छींकने या खांसने से करीब 20 फुट की दूरी तक जा सकता है

6 फीट की दूरी नहीं पर्याप्त, कोरोना से बचना है तो 20 फुट तक दूरी बनाए, नए शोध में हुआ खुलासा

6 फीट की दूरी नहीं पर्याप्त, कोरोना से बचना है तो 20 फुट तक दूरी बनाए, नए शोध में हुआ खुलासा

नई दिल्ली. कोरोना वायरस (Coronavirus Outbreak) का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है। कोरोना वायरस (Coronavirus in India) इतना संक्रामक हो चुका है कि संक्रमित व्यक्ति के नजदीक भर जाने से भी वायरस फैलना का सकता है। इसके अलावा कोरोना वायरस सिर्फ खांसने या छींकने से फैलता है। बताया गया था कि कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए एक-दूसरे से छह फुट की दूरी बनाने जरूर है। पर इस बीच एक अध्ययन में दावा किया गया है कि एक-दूसरे से छह फुट की दूरी बनाने का नियम नाकाफी है, क्योंकि यह जानलेवा वायरस छींकने या खांसने से करीब 20 फुट की दूरी तक जा सकता है।
नमी वाले मौसम में तीन गुना तक फैलता है वायरस

अध्ययन में यह दावा किया गया है। वैज्ञानिकों ने विभिन्न वातावरण की स्थितियों में खांसने, छींकने और सांस छोड़ने के दौरान निकलने वाली संक्रामक बूंदों के प्रसार का मॉडल तैयार किया है और पाया कि कोरोना वायरस सर्दी और नमी वाले मौसम में तीन गुना तक फैल सकता है।
छह फुट की दूरी का नियम अपर्याप्त

इन शोधार्थियों में अमेरिका के सांता बारबरा स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधार्थी भी शामिल हैं। उनके मुताबिक, छींकने या खांसने के दौरान निकली संक्रामक बूंदें विषाणु को 20 फुट की दूरी तक ले जा सकती हैं। लिहाजा, संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए मौजूदा छह फुट की सामाजिक दूरी का नियम अपर्याप्त है।
बातचीत से 40,000 बूंदें निकल सकती

पिछले शोध के आधार पर उन्होंने बताया कि छींकने, खांसने और यहां तक कि सामान्य बातचीत से करीब 40,000 बूंदें निकल सकती हैं। यह बूंदें प्रति सेकंड में कुछ मीटर से लेकर कुछ सौ मीटर दूर तक जा सकती हैं। इन पिछले अध्ययन को लेकर वैज्ञानिकों ने कहा कि बूंदों की वायुगतिकी, गर्मी और पर्यावरण के साथ उनके बदलाव की प्रक्रिया वायरस के प्रसार की प्रभावशीलता निर्धारित कर सकती है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि श्वसन बूंदों के माध्यम से कोविड-19 का संचरण मार्ग कम दूरी की बूंदें और लंबी दूरी के एरोसोल कणों में विभाजित है।

मौसम का बदलता प्रभाव


अध्ययन में कहा गया है कि बड़ी बूंदें गुरुत्वाकर्षण के कारण आमतौर पर किसी चीज पर जम जाती हैं जबकि छोटी बूंदें, एरोसोल कणों को बनाने के लिए तेजी से वाष्पित हो जाती हैं, ये कण वायरस ले जाने में सक्षम होते हैं और घंटों तक हवा में घूमते हैं। उनके विश्लेषण के मुताबिक, मौसम का प्रभाव भी हमेशा एक जैसा नहीं होता है।
छह फुट की दूरी वातावरण की कुछ स्थितियों में अपर्याप्त

शोधकर्ताओं ने बताया कि कम तापमान और उच्च आर्द्रता बूंदों के जरिए होने वाले संचरण में मद्दगार होती है जबकि उच्च तापमान और कम आर्द्रता छोटे एरोसोल-कणों को बनाने में सहायक होता है। वैज्ञानिकों ने अध्ययन में लिखा है कि रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) द्वारा अनुशंसित छह फुट की दूरी वातावरण की कुछ स्थितियों में अपर्याप्त हो सकती है, क्योंकि ठंडे और आर्द्र मौसम में छींकने या खांसने के दौरान निकलने वाली बूंदें छह मीटर (19.7 फुट) दूर तक जा सकती हैं।
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