दरअसल, मलेरिया की दवा हाइड्रोक्सी-क्लोरोक्वीन की चर्चा दुनिया भर में इसलिए है कि आइसीएमआर के गाइडलाइंस के मुताबिक भारत में कोरोना मरीजों के करीब रहने वालों और उनका इलाज करने वाले डाक्टरों व स्वास्थ्य कर्मियों को कोरोना वायरस से संक्रमण के लिए बचाव के रूप में दी जा रही है। इस बारे में डॉ. आर गंगाखेड़कर का कहना है कि यह दवा कोरोना से बचाव में कितना सक्षम है। तत्काल इस बात का जवाब देना मुमकिन नहीं है। इसका पता लंबे समय तक निगरानी के बाद लग सकता है।
आईसीएमआर के प्रमुख वैज्ञानिक गंगाखेडकर का कहना है कि जिन लोगों को यह दवा दी जा रही है, उनपर आइसीएमआर पूरी निगरानी कर रहा है। इस मामले में दो सप्ताह तक और निगरानी के बाद ही किसी नतीजे तक पहुंचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि जैसे ही हाइड्रोक्सी-क्लोरोक्वीन के कोरोना वायरस को रोकने में प्रभावी होने की पुष्टि हो जाएगा, आइसीएमआर खुद ही आम लोगों के इस्तेमाल के लिए गाइडलाइंस जारी कर देगा।
बता दें कि इस दवा को फिलहाल आम जनता के उपयोग पर रोक है। इस रोके बारे में पूछे जाने पर स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ऐसा तीन कारणों से किया गया है। सबसे पहली बात तो यह है कि यह दवा कितनी कारगर है इसका पता लगाया जाना अभी बाकि है। दूसरे इस दवा के साइड इफेक्ट होते हैं और दिल मरीजों के लिए यह घातक हो सकता है। तीसरी बात ये कि कोरोना के भय के कारण घबड़ाहट में इसके इस्तेमाल का खतरा बढ़ गया है।
आईसीएमआर के वैज्ञानिकों का कहना है कि हाइड्रोक्सी-क्लोरोक्वीन तभी तक प्रभावी रह सकता है, जब तक कोई निश्चित अंतराल पर इसे लेता रहता है। आठ हफ्ते के बाद दुनिया में कहीं भी इस दवा के इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी जाती है। ऐसे में यदि कोरोना वायरस का आउटब्रेक डेढ़ या दो महीने बाद हुआ और उस समय सबको हाइड्रोक्सी-क्लोरोक्वीन देने की जरूरत समझी गई, तो अधिकांश लोगों को इसीलिए नहीं दिया जा सकेगा क्योंकि वे इसका इस्तेमाल पहले ही कर चुके होंगे। यही कारण है कि सरकार ने हाइड्रोक्सी-क्लोरोक्वीन की खुली बिक्री को प्रतिबंधित कर दिया है। सबसे बड़ी बात यह कि कोरोना वायरस अभी कम्युनिटी ट्रांसमिशन के फेज में नहीं पहुंचा है।