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क्रिप्टो करेंसी और ड्रोन के मेल से बढ़ा आतंकी हमलों का खतरा

- आइआइटी कानपुर ने विकसित की नई तकनीक ड्रोन के जीपीएस को हैक कर उसके सिग्नल को ब्लॉक किया जा सकेगा।- क्रिप्टो करेंसी और ड्रोन का यह आतंकी मेल बहुत गंभीर खतरा है।

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क्रिप्टो करेंसी और ड्रोन के मेल से बढ़ा आतंकी हमलों का खतरा

क्रिप्टो करेंसी और ड्रोन के मेल से बढ़ा आतंकी हमलों का खतरा

जयपुर । जम्मू में वायुसेना के एयरबेस पर हुए ड्रोन हमले ने सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ा रखी है। इसमें आतंकियों ने जो तरीका इस्तेमाल किया है, उससे जम्मू से लेकर दिल्ली तक जबरदस्त हलचल है। एजेंसियों की चिंता दो वजह से ज्यादा बढ़ गई है। पहली वजह सस्ता व कहीं से भी खरीदा जा सकने वाला ड्रोन तो दूसरी डार्क वेब माध्यम से पैसे का लेनदेन। सुरक्षा एजेंसी से जुड़े एक अधिकारी कहते हैं कि अब क्रिप्टो करेंसी बाजार में हैं। भले ही उनकी मान्यता नहीं है, पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकियों ने इसे अपना लिया है। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर क्वाडकॉप्टर उपलब्ध हैं। कोई भी आतंकी बिना जान का खतरा लिए दो किमी दूर से बैठ अपने इरादे को अंजाम दे सकता है। क्वाडकॉप्टर कहीं भी चार से पांच किलो विस्फोटक गिरा सकता है। क्रिप्टो करेंसी और ड्रोन का यह आतंकी मेल बहुत गंभीर खतरा है।

नई तकनीक का इस्तेमाल -
गृह मंत्रालय के विशेष सचिव (आंतरिक सुरक्षा) वीएसके कौमुदी ने कहा, आतंक के प्रचार व कैडर की भर्ती के लिए इंटरनेट और सोशल मीडिया का दुरुपयोग हो रहा है। आतंक के वित्तपोषण के लिए नई भुगतान विधियों का उपयोग हो रहा है। ड्रोन तकनीक का भी इस्तेमाल कर रहे हैं।

ड्रोन का जीपीएस हो सकेगा हैक, वापस की सुविधा भी -
जम्मू-कश्मीर में वायुसेना के एयरबेस कैंप पर ड्रोन हमले की घटना के बीच आइआइटी कानपुर ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसमें दुश्मन के मंसूबे विफल किए जा सकेंगे। इससे न केवल ड्रोन के हमले को रोका जा सकेगा, बल्कि ड्रोन से होने वाली जासूसी भी रोकी जा सकेगी। इस तकनीक के जरिए दुश्मन के ड्रोन के जीपीएस को हैक कर उसके सिग्नल को ब्लॉक किया जा सकता है। साथ ही ड्रोन पर जाल डालकर उसे रोका जा सकेगा। ड्रोन को रिटर्न टू ओरिजिन यानी जहां से आया है वहां भेजने की सुविधा भी यह तकनीक देगी।

बनाए हैं कई ड्रोन-
आइआइटी ने विभ्रम, सुदर्शन, कॉकरोच समेत कई ड्रोन विकसित किए हैं। इन्हें आपदा के समय सहायता के लिए प्रयोग किया जा चुका है। आइआइटी के निदेशक प्रो. अभय करंदीकर ने बताया, अब अत्याधुनिक तकनीक डेवलप की जा रही है, ताकि ये दुश्मन के रडार पर न आ सकें।