दंगे के बाद दिल्ली पुलिस ने अपनी जांच शुरू कर दी थी। पुलिस ने 13 जुलाई को दिल्ली हाईकोर्ट में हलफनामा दायर किया था। इस हलफनामे के मुताबिक, दंगे में 53 लोगों की मौत हुई थी। इसमें 40 मुस्लिम समुदाय के लोग थे, जबकि 13 लोग हिंदू थे। दिल्ली पुलिस ने इस मामले में 751 एफआईआर दर्ज की। हालांकि, पुलिस ने दंगे से जुड़े दस्तावेजों को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया था।
दस्तावेज सार्वजनिक नहीं करने को लेकर पुलिस की दलील है कि कई जानकारियां काफी संवेदनशील है। इन्हें वेबसाइट पर अपलोड नहीं कर सकते। इससे स्थिति और बिगड़ सकती है। माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की नेता वृंदा करात ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसके जवाब में पुलिस ने गत वर्ष 16 जून को यह बात कोर्ट में कही थी।
पुलिस का कहना है कि दंगों की प्लानिंग काफी पहले से की जा रही थी। इसको लेकर साजिशें रची गईं। वहीं, एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि दिल्ली पुलिस की एफआईआर संख्या 59 इन साजिशों के बारे में ही है। इसमें अनलॉफुल एक्टिविट प्रिवेंशन एक्ट (यूएपीए) की तीन धाराओं का उल्लेख है।
बता दें कि यूएपीए का इस्तेमाल अमूमन आतंकवाद के संदिग्ध लोगों को लंबे समय तक बिना जमानत जेल में रखने के लिए होता है। वहीं, इस एफआईआर में उन छात्र नेताओं के नाम भी शामिल हैं, जो दिल्ली में सीएए के खिलाफ हुए प्रदर्शनों में प्रमुख तौर पर शामिल थे। इसमें 22 लोगों को अब तक गिरफ्तार किया गया है, जिसमें जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद और पीएफआई सदस्य दानिश के अलावा सफूरा जरगर, परवेज ओर इलियास का नाम भी शामिल है। सफूरा, दानिश और परवेज के अलावा इलियास फिलहाल जमानत पर हैं, बाकि सदस्य न्यायिक हिरासत में जेल में बंद हैं।