नई दिल्ली। नागरिकता संशोधन कानून (citizenship amendment act) के खिलाफ हिंसक प्रदर्शनों से दिल्ली धधक रही थी, तब एक तस्वीर ने पूरे देश का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया। उसमें निहत्थे हेड कांस्टेबल रतनलाल (-martyr head constable delhi police ratan lal) पिस्तौल से लैस उपद्रवी को समझाते हुए देखे जा सकते थे। वहशी युवक ने पिस्तौल उनके सीने पर तान दी, तब भी रतनलाल पूरे आत्मविश्वास के साथ वहां जमे रहे। मगर बेरहम उपद्रवियों ने उन्हें जीवित नहीं छोड़ा।
सीएए के विरोध के नाम पर अपना हक मांगने वालों ने रतनलाल की पत्नी, बच्चों, भाइयों और मां को उनके अधिकारों से महरूम कर दिया। रतनलाल राजस्थान के सीकर के रामगढ़ शेखावाटी के तिहावली गांव के रहने वाले थे। उनका एक भाई अभी भी गांव ही में रहते है, जबकि दूसरे भाई बैंगलुरु में। तिहावली गांव में शिक्षा प्राप्त करने के बाद रतनलाल 1998 में दिल्ली पुलिस में भर्ती हुए थे।
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हेडकांस्टेबल रतनलाल की हत्या जैसे वारदातें फिर न हों, इसके लिए जरूरी है कि विरोध प्रदर्शन करने वाले लोग शांतिपूर्वक अपनी बात रखना सीखें। संविधान ने हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया है, लेकिन इसकी आड़ में सरकारी संपत्ति को जलाना, सड़कों को गैरजरूरी ढंग से ब्लॉक कर देना, हिंसा फैलाना और किसी इन्सान की जान ले लेने जैसी गतिविधियों से दूर रहना चाहिए।