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रसगुल्ले के अलावा बासमती चावल, बिरयानी और तिरुपति लड्डू पर भी जीआई विवाद

रसगुल्ले से पहले इन चीजों को लेकर भी पेटेंट और जीआई टैग पर छिड़ चुका है विवाद, जानिए इनकी पूरी स्टोरी कब, क्या हुआ...

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नोएडा

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Rajkumar Pal

Nov 15, 2017

नई दिल्ली: रसगुल्ले पर छिड़ी बहस के बीच आखिरकार रसगुल्ला किसका है इस पर फैसला हो चुका है। दो साल से पश्चिम बंगाल और उड़ीसा के बीच यह विवाद चल रह था कि रसगुल्ले का जन्म उनके यहां हुआ है। इसलिए रसगुल्ले पर उनका हक बनता है। वहीं अब इस विवाद का अंत हो चुका है। मंगलवार को रसगुल्ले का जियोग्राफिकल इंडेकिशन यानी जीआई टैग बंगाल के नाम हो गया है। यानी अब ये बात आधिकारिक रूप से सिद्ध है कि रसगुल्ले का जन्म बंगाल में हुआ था।

यहां आपको बता दें कि जीआई टैग किसी वस्तु या संपति की भौगोलिक पहचान बताने वाला टैग होता है। दरअसल साल 2015 में जब ओडिशा ने रसगुल्ले पर जीआई टैग हासिल करने के लिए दावेदारी पेश की थी तब पश्चिम बंगाल ने उसका विरोध किया था। लेकिन, अब जीआई टैग का निर्धारण करने वाली चेन्नई स्थित कमेटी ने दोनों राज्यों के तर्क सुने। और, फैसला पश्चिम बंगाल के पक्ष में सुनाया। अब इस जीआई टैग को लेकर पूरे देश में अलग-अलग चीजों पर बहस दोबारा से छिड़ चुकी है। दरअसल बासमती चावल, बिरयानी और तिरूपति लड्डू जैसी चीजों को लेकर भी जीआई पर विवाद हुआ है।

बासमती पर मप्र और पंजाब आमने-सामने

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने हाल ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बासमी चावल के जीआई को लेकर पत्र लिखा था। दरअसल साल 2014 के शुरुआत में मध्य प्रदेश के बासमती चावल को जीआई टैग दिया गया था। जिसके बाद अंतरराष्ट्रीय पटल पर जैसे पाकिस्तान और अमेरिका के चावल उत्पादकों के समूह ने आपत्ति दर्ज करायी थी। वहीं अब बासमती चावल के जीआई टैग को लेकर मध्य प्रदेश और पंजाब भी आमने-सामने आती दिखाई दे रही है। पंजाब के सीएम ने मध्य प्रदेश के बासमती पैदा करने वाले 13 जिलों का भौगोलिक संकेतिक (जीआई) नत्थीकरण रोकने के संबंध में पत्र लिखा था। उनका कहना है कि इससे पंजाब सहित देश के दूसरे बासमती पैदा करने वाले राज्यों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा।

हैदराबाद की नहीं है बिरयानी

बिरयानी का नाम आते ही सबसे पहले हैदराबादी बिरयानी दिमाग आ जाती है। लेकिन, भोगौलिक संकेतक चिह्न जीआई टैग हासिल करने में हैदराबाद नाकाम रही है। दरअसल, बिरयानी के जीआई टैग के लिए जो आवेदन किए गए थे। उसमें आवदेक ऐतिहासिक उत्पत्ति और इस व्यंजन का समर्थन करने वाले दस्तावेजों से जुड़े आंकड़ों को साबित नहीं कर पाए थे। बता दें कि ट्रेड मार्क्स एंड ज्योग्राफिक्ल इंडीकेशंस रजिस्ट्री के सहायक रजिस्ट्रार चिन्नाराजा जी नायडू ने कहा था कि रजिस्ट्री ने तीन बार जांच रिपोर्ट जारी की। वहीं आवेदक को दस्तावेज के साक्ष्य और हैदराबादी बिरयानी की उत्पति का सबूत पेश करने का निर्देश दिया गया था। लेकिन, साक्ष्य नहीं पेश किए गए थे।

तिरुपति लड्डू पर भी हुआ था विवाद

सालों पहले तिरुपति लड्डू को लेकर भी विवाद छिड़ चुकी है लेकिन साल 2012 में यह मामला तब शांत हुआ। जब तिरुपति बोर्ड को पेटेंट का कानूनी अधिकार मिला। दरअसल तिरुपति के इस लड्डू का पेटेंट तो साल 2009 सितंबर में ही मिल गया था। जब लड्डू को भौगोलिक संकेत यानि जीआई दे दिया गया था। लेकिन, इस दावे को आर.एस प्रवीण राज ने चुनौती दी थी। प्रवीण राज बौद्धिक संपदा अधिकार मामलों से जुड़े कार्यकर्ता और वैज्ञानिक हैं। उनका कहना था कि इस पेंटेट से सिर्फ बोर्ड के लड्डू उत्पादकों का ही लाभ होगा। जबकि तिरुपति लड्डू का फायदा पूरे तिरुपति के लोगों को होना चाहिए था। जिसके बाद पेटेंट की कानूनी लड़ाई लड़ी गई और साल 2012 में तिरुपति बोर्ड को पेटेंट का कानूनी अधिकार मिला।