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Gujrat सरकार को कोराना टेस्ट अपने खर्च पर करने से रोकने का अधिकार नहीं – Amicus Curiae

गुजरात हाईकोर्ट राज्य सरकार द्वारा कोरोना टेस्ट को लेकर बनाई गई नीति से संबंधित शिकायतों पर सुनवाई कर रहा है। राज्य सरकार को संविधान में निहित मौलिक अधिकार के तहत कुछ मामलों में प्रतिबंध लगाने का अधिकार हैं। लेकिन कोई अपने खर्च पर कोविद-19 टेस्ट करता है तो उसे प्रतिबंधित करने का अधिकार सरकार को हासिल नहीं है।

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Gujrat High Court

गुजरात हाईकोर्ट राज्य सरकार के द्वारा कोरोना टेस्ट को लेकर बनाई गई नीति से संबंधित शिकायतों पर सुनवाई कर रहा है।

नई दिल्ली। गुजरात हाईकोर्ट ( Gujrat High Court ) के मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ ( Chief Justice Vikram Nath ) की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने राज्य सरकार द्वारा कोरोना टेस्ट ( Coronavirus Test ) को लेकर बनाई गई नीति से संबंधित शिकायतों पर सुनवाई की। इस दौरान एमिकस क्यूरी बृजेश त्रिवेदी ( Amicus Curiae ) ने इस विषय पर गुजरात सरकार के रुख का विरोध किया।

एमिकस क्यूरी बृजेश त्रिवेदी ने अदालत को बताया कि गुजरात सरकार ( Gujrat Government ) को खुद के खर्च पर कोरोना वायरस टेस्ट करने से किसी को रोकने का अधिकार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को संविधान में निहित मौलिक अधिकार के तहत कुछ मामलों में प्रतिबंध लगाने का अधिकार हैं। लेकिन कोई अपने खर्च पर कोविद-19 टेस्ट ( Covid-19 Test ) करता है तो उसे प्रतिबंधित करने का अधिकार सरकार को हासिल नहीं है।

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राज्य सरकार के तर्क का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य की रक्षा के लिए चिकित्सा देखभाल भारत के संविधान ( Constitution of India ) के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है। हालांकि, अनुच्छेद 19 के तहत प्रदत्त मौलिक अधिकारों की तरह, अनुच्छेद 21 के तहत यह मौलिक अधिकार पूर्ण अधिकार नहीं है और उचित प्रतिबंधों के अधीन है। इसके बावजूद यह मामला सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

उन्होंने कहा कि दिल्ली की आधिकारिक रूप से घोषित आबादी 1.9 करोड है। वहां पर केंद्र सरकार ने हर रोज 18 हजार कोविद-19 टेस्ट कराने का फैसला लिया है। गुजरात की आबादी 6.5 करोड़ है। ऐसे में अहमदाबाद मेडिकल एसोसिएशन ( AMA ) को एक दिन में 40,000 नमूनों का परीक्षण करना चाहिए। सरकार ऐसा करने के सक्षम नहीं है। ऐसी स्थिति में अगर कोई अपने खर्च पर टेस्ट करता है तो उसे सरकार कैसे रोक सकती है।

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वहीं अमदाबाद मेडिकल एसोसिएशन के अधिवक्ता मितुल शलत ने कहा कि जिन सात प्रयोगशालाओं को परीक्षण के लिए ICMR की मंजूरी मिली है उन्हें राज्य सरकार से मंजूरी मिलनी बाकी है। राज्य सरकार की नीति के मुताबिक एक एमडी ही कोरोना टेस्ट के लिए योग्य व्यक्ति हो सकता है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को इस टेस्ट के लिए शहर में जाना पड़ेगा। ऐसा इसलिए कि अधिकांश सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों का संचालन एमबीबीएस डॉक्टरों द्वारा किया जाता है।

अधिवक्ता त्रिवेदी के मुताबिक आईसीएमआर की गाइडलाइन (ICMR Guideline ) में योग्य चिकित्सक यानी एमबीबीएस डॉक्टर भी टेस्ट कर सकता है।

अहमदाबाद इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने मांग की है कि डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए बार-बार टेस्ट के लिए अनिवार्य सरकार की मंजूरी को हटा दिया जाना चाहिए।

बता दें कि गुजरात हाईकोर्ट राज्य सरकार के द्वारा कोरोना टेस्ट को लेकर बनाई गई नीति से संबंधित शिकायतों पर सुनवाई कर रहा है। इस मामले में गुजरात सरकार ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ( ICMR ) के दिशा-निर्देशों का हवाला देते हुए कहा है कि सरकारी अधिकारियों द्वारा स्वीकृति के बाद ही असिम्प्टोमटिक व्यक्तियों की कोरोना जांच की अनुमति दी जा सकती है।

सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने गुरुवार को सरकार से पूछा कि क्या पैथोलॉजिकल टेस्ट या डायग्नोसिस इस देश के नागरिकों का मौलिक अधिकार है।


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