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पाकिस्तान की जेलों में हिन्दू कैदियों का होता है जबरदस्त उत्पीड़न, थर्ड डिग्री टाॅर्चर से बना देते हैं विक्षिप्त

locationनई दिल्लीPublished: Nov 01, 2020 08:27:20 am

Submitted by:

Ashutosh Pathak

Highlights.

पाकिस्तान के कराची स्थित लांडी जेल में 8 साल की सजा काट कर लौटे 5 भारतीय नागरिकों ने किया खुलासा
वाघा बॉर्डर के रास्ते कानपुर निवासी शमशुद्दीन के साथ चार और भारतीय नागरिक आए, जो पाकिस्तानी जेल में बंद रहे
इन चार में बिहार के ललितपुर से सोनू सिंह, ओडिशा से बिरजू, आंध्र प्रदेश से सत्यवान और केरल निवासी घनश्याम शामिल हैं

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नई दिल्ली।

पाकिस्तान की जेल में भारतीय कैदियों से व्यवहार उनका मजहब देखकर होता है न कि अपराध की प्रकृति के अनुसार। हिन्दू कैदियों को थर्ड डिग्री टॉर्चर किया जाता है। यही कारण है कि कैदी मानसिक रूप से विक्षिप्त हो जाते हैं।
यह निष्कर्ष पाकिस्तान की कराची स्थित लांडी जेल में 8 साल की सजा काट कर भारत लौटे पांच कैदियों से बातचीत और उनकी स्थिति देखने के बाद निकला। वाघा के रास्ते कानपुर (उत्तर प्रदेश) के कंघी मोहाल निवासी शमसुद्दीन के साथ चार कैदी और आए हैं। ये हैं- सोनू सिंह ललितपुर बिहार से, बिरजू ओडिशा से, सत्यवान आंध्र प्रदेश से और घनश्याम केरल से। ये सब अमृतसर के नारायणगढ़ स्थित पुनर्वास केन्द्र में ठहरे हुए हैं। प्रशासन इन्हें इनके परिवार वालों को सौंपने की तैयारी कर रहा है। शमसुद्दीन को छोडक़र अन्य की मानसिक स्थिति सही नजर नहीं आ रही है।
शमशुद्दीन के प्रति रवैया हमेशा नरम और बाकि के लिए गरम

शमसुद्दीन ने बताया कि बताया कि वह पाकिस्तान की जेल में आठ साल रहे। वहां पर पाकिस्तानी जेल अधिकारियों का व्यवहार उनके प्रति हमेशा नरम ही रहा। इस आठ साल की सजा में पाकिस्तानी जेल के अधिकारियों ने शायद मजहब के नाम पर शायद कुछ नहीं कहा। उनके साथ आए चार और कैदी पाकिस्तान की जेल में होने वाले जुल्म की दास्तां के उदाहरण हैं। चारों व्यक्ति बदहवास हैं। ये कराची की सेंट्रल जेल में थे।
सुनने और समझने की स्थिति खत्म हो चुकी है

पाकिस्तान की जेल में उन्हें सैकड़ों जख्म दिए गए हैं। इसके चलते वह दिमागी संतुलन खो बैठे है। हालत यह है कि वे कुछ भी बताने की स्थिति में नहीं हैं। सुनने और समझने की शक्ति ही चली गई है। बिरजू व घनश्याम तो जैसे सुध-बुध ही खो बैठे हैं। जैसे वह कुछ जानते ही नहीं। पाकिस्तान की जेलों में हिन्दू कैदियों को थर्ड डिग्री टॉर्चर किया जाता है। शायद यही इन कैदियों के साथ भी हुआ है। शमसुद्दीन ने बताया- वह परिवार वालों से झगड़ कर 1992 में पाकिस्तान गए थे। भारत में पाकिस्तान से आया एक युवक उनका दोस्त बन गया था। वह अपने साथ पाकिस्तान ले गया था। मैं कुछ दिन पाकिस्तान में रहा तो वहां पर दंगे शुरू हो गए। दंगों के दौरान उनका वीजा खत्म हो गया तो वह भारत नहीं आ पाए। उसके बाद वह वही फंस गए। अपने दोस्त के पास रहते रहे। उन्होंने अपना वहां पर कारोबार जमा लिया।
पहले कारोबार जमाया, नागरिक बनने के बाद परिवार बुलाया

कारोबार जमने के बाद 1994 में वह पाकिस्तान के नागरिक भी बन गए। उनका कारोबार भी वहां पर अच्छा चल गया। इस वजह से उन्होंने अपना परिवार भी वहीं बुला लिया। परिवार के साथ वह पाकिस्तान में अपना कारोबार जमा कर रहने लगे। 2007 में उनके बच्चे भारत घूमने के लिए आए। डेढ़ महीना वह भारत में रहे और फिर वापस पाकिस्तान लौट आए। पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के कत्ल के बाद वहां का माहौल बिगडऩे लगा तो 2008 में अपनी दो बेटियों की शादी भारत में की। अपने परिवार को भारत में भेज दिया। धीरे-धीरे भारत में शिफ्ट होने की योजना बनाई।
जासूसी का टैग लगाकर जेल में डाल दिया

शमसुद्दीन ने बताया कि पाकिस्तान के लोगों को रास नहीं आया कि कोई भारत से आकर यहां पर अपना पैर जमा ले। मैंने पाकिस्तान में अपना पासपोर्ट भी बनवाया। उस पासपोर्ट के जरिए वह एक दो बार भारत भी आए। 2012 में लोगों की शिकायत पर व पासपोर्ट रिन्यू करवाने के दौरान वह पकड़े गए। जासूसी का टैग लगाकर उन्हें जेल में डाल दिया गया।
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