
नई दिल्ली/कोलकाता।
प. बंगाल की तृणमूल कांग्रेस सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले और ममता बनर्जी के खास शुभेंदु अधिकारी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मिदनापुर की मेगा रैली में भाजपा का दामन थामा। उन्हें मंच पर शाह के बगल में जगह दी गई थी।
शुभेंदु के साथ सांसद सुनील मंडल, दीपाली विश्वास समेत कई नेताओं ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की। शुभेंदु के भाजपा में शामिल होने से तृणमूल प्रमुख को बड़ा सियासी झटका लगा है।
शाह ने मिदनापुर की रैली में आरोप लगाया कि ममता बनर्जी सरकार भ्रष्टाचार में डूबी है, जिसकी वजह से वह जनता से कट गई है। टीएमसी की राजनीतिक हिंसा और धमकाने का कोई फायदा नहीं होगा। टीएमसी जितनी हिंसा करेगी भाजपा उतनी मजबूत होगी, यह तो सिर्फ शुरुआत है।
शाह बोले, भाजपा को 5 साल दीजिए, हम बंगाल को सोनार बांग्ला बनाएंगे। शाह ने खुदीराम बोस के पश्चिम मिदनापुर स्थित पैतृक गांव पहुंचकर उन्हें पुष्पांजिल अर्पित की। कहा- मेरा सौभाग्य है कि मैं महान स्वतंत्रता सेनानी के घर की मिट्टी को माथे से स्पर्श कर पाया।
शुभेंदु ने बोला हमला
शुभेंदु ने कहा, प. बंगाल की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। राज्य को इससे मु त कराना है, तो इसकी बागडोर पीएम मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा को सौंपने की जरूरत है।
जमीनी स्तर पर पकड़ है मजबूत
शुभेंदु का अलग होना तृणमूल के लिए बड़ा झटका इसलिए है योंकि वे उन नेताओं में हैं, जिनकी जमीनी स्तर पर पकड़ खासी मजबूत है। जब वाममोर्चा अजेय लग रहा था तब शुभेंदु ही थे, जिन्होंने नंदीग्राम में जमीन को लेकर आंदोलन किया। आखिरकार 2011 में वाममोर्चा सरकार की विदाई हुई। जंगलमहल इलाके पर क जे, मालदह,मुर्शिदाबाद में तृणमूल की पैठ बढ़ाने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
35 विधानसभा सीटों पर दबदबा
शुभेंदु के पिता शिशिर अधिकारी कांथी और छोटे भाई दिव्येंदु अधिकारी तमलुक सीट से तृणमूल सांसद हैं। शिशिर मनमोहन सरकार में ग्रामीण विकास राज्यमंत्री भी रह चुके हैं। शुभेंदु खेमा के अनुसार पश्चिम मिदनापुर, बांकुड़ा, पुरुलिया, झाडग़्राम और बीरभूम के कुछ हिस्सों समेत करीब 35 विधानसभा सीटों पर उनका दबदबा है। हालांकि तृणमूल शिविर का माना है कि शुभेंदु का लगभग 20 सीटों पर प्रभाव है।
बढ़ा दी चुनौतियां
शुभेंदु के पार्टी छोडऩे से आगामी विधानसभा चुनावों के लिए तृणमूल की चुनौतियां बढ़ गई हैं। माना जा रहा है कि जब तृणमूल प्रमुख ने अभिषेक बनर्जी को तवज्जो देना शुरू किया तो बड़े-बड़े योगदान वाले नेता अपमानित महसूस करने लगे। ऊपर से चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की पार्टी के फैसलों में बढ़ती दखलंदाजी ने इन नेताओं को टीएमसी से मोह तोडऩे पर मजबूर कर दिया।
Published on:
20 Dec 2020 07:32 am
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