शुभेंदु ने कहा, प. बंगाल की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। राज्य को इससे मु त कराना है, तो इसकी बागडोर पीएम मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा को सौंपने की जरूरत है।
शुभेंदु का अलग होना तृणमूल के लिए बड़ा झटका इसलिए है योंकि वे उन नेताओं में हैं, जिनकी जमीनी स्तर पर पकड़ खासी मजबूत है। जब वाममोर्चा अजेय लग रहा था तब शुभेंदु ही थे, जिन्होंने नंदीग्राम में जमीन को लेकर आंदोलन किया। आखिरकार 2011 में वाममोर्चा सरकार की विदाई हुई। जंगलमहल इलाके पर क जे, मालदह,मुर्शिदाबाद में तृणमूल की पैठ बढ़ाने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
शुभेंदु के पिता शिशिर अधिकारी कांथी और छोटे भाई दिव्येंदु अधिकारी तमलुक सीट से तृणमूल सांसद हैं। शिशिर मनमोहन सरकार में ग्रामीण विकास राज्यमंत्री भी रह चुके हैं। शुभेंदु खेमा के अनुसार पश्चिम मिदनापुर, बांकुड़ा, पुरुलिया, झाडग़्राम और बीरभूम के कुछ हिस्सों समेत करीब 35 विधानसभा सीटों पर उनका दबदबा है। हालांकि तृणमूल शिविर का माना है कि शुभेंदु का लगभग 20 सीटों पर प्रभाव है।
शुभेंदु के पार्टी छोडऩे से आगामी विधानसभा चुनावों के लिए तृणमूल की चुनौतियां बढ़ गई हैं। माना जा रहा है कि जब तृणमूल प्रमुख ने अभिषेक बनर्जी को तवज्जो देना शुरू किया तो बड़े-बड़े योगदान वाले नेता अपमानित महसूस करने लगे। ऊपर से चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की पार्टी के फैसलों में बढ़ती दखलंदाजी ने इन नेताओं को टीएमसी से मोह तोडऩे पर मजबूर कर दिया।