
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ संसद में महाभियोग लाए जाने की प्रक्रिया ने देश में महाभियोग और उसके क्रियान्वयन के विभिन्न आयामों पर एक नई बहस को जन्म दे दिया है। ताजा मामले की शुरुआत तब हुई जब मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट के 4 वरिष्ठ न्यायाधीशों ने प्रेस कांफ्रेंस कर कई मुद्दों पर असहमति व्यक्त करते हुए उन पर गंभीर आरोप लगाए थे। बाद में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने इन आरोपों को लेकर सरकार पर हमला बोला और चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग लाने की घोषणा की थी। बता दें कि भारत के किसी भी राष्ट्रपति को अब तक महाभियोग का सामना नहीं करना पड़ा है जबकि न्यायाधीशों के विरूद्ध कई मौकों पर महाभियोग लाया जा चुका है।
क्या है महाभियोग और उसकी प्रकिया
महाभियोग एक न्यायिक प्रक्रिया है जो संसद में कुछ विशेष पदों पर आसीन व्यक्तियों के खिलाफ संविधान के उल्लंघन का आरोप लगने पर चलाई जाती है। इन पदों में राष्ट्रपति, सुप्रीमकोर्ट व हाईकोर्ट के न्यायाधीश, भारत के निर्वाचन आयुक्त आदि हैं। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 56 के अनुसार महाभियोग की प्रक्रिया राष्ट्रपति को हटाने के लिए प्रयुक्त की जा सकती है। न्यायधीशों पर महाभियोग का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 124 (4) में मिलता है। इसके तहत सुप्रीमकोर्ट या हाईकोर्ट के किसी न्यायाधीश पर कदाचार या अक्षमता के लिए महाभियोग का प्रस्ताव लाया जा सकता है।
न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग
भारत में न्यायाधीशों के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया जजेज इन्क्वायरी एक्ट 1968 में वर्णित नियमों और विधियों के अनुसार होती है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद १२४ कहता है कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को राष्ट्रपति के आदेश से हटाया जा सकता है। किसी न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है। न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को निचले सदन लोकसभा के कम से कम 100 और ऊपरी सदन राज्यसभा के कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन प्राप्त होना चाहिए। लोकसभा के अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापित के पास महाभियोग के प्रस्ताव को स्वीकार करने अथवा खारिज करने का विशेषाधिकार होता है। अगर महाभियोग का प्रस्ताव मंजूर किया जाता है तो उसके बाद आरोपों की जांच के लिए एक तीन सदस्यीय समिति का गठन होता है जिसमें मुख्य न्यायाधीश अथवा सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश, किसी राज्य के हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और एक विधि विशेषज्ञ शामिल होते हैं।
अगर यह समिति अपनी जांच में न्यायाधीश को दोषी पाती है तो सदन में महाभियोग लगाने की कार्यवाही शुरू होती है। प्रस्ताव के पेश होने के बाद जरुरी नियमों का पालन करते हुए उसे दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत के साथ अलग अलग पारित होना चाहिए। आरोपों की जांच के दौरान पदाधिकारी को भी उपस्थित होकर या किसी कानूनी विशेषज्ञ के माध्यम से अपनी सफाई देने का अधिकार होगा। हालांकि इस बारे में अंतिम फैसला संसद को करना होता है। दोनों सदनों से दो तिहाई बहुमत से पारित महाभियोग प्रस्ताव को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। इसके बाद राष्ट्रपति न्यायाधीश को हटाने का आदेश जारी करते हैं।
महाभियोग प्रक्रिया का सामना करने वाले न्यायधीश
जस्टिस सौमित्र सेन, कोलकाता हाईकोर्ट
जस्टिस पी वी दिनकरन, सिक्किम हाईकोर्ट
जस्टिस जे बी परदीवाला, गुजरात हाईकोर्ट
जस्टिस वी रामास्वामी, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट
Published on:
23 Apr 2018 10:39 am
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