39,000 करोड़ रुपये की लागत
वहीं अमरीका में डिफेंस और स्ट्रैटेजी की ओर से भारत के समर्थन की बात कही गई है। स्ट्रैटेजी से जुड़े एक वर्ग ने कहा कि भारत पर यदि बंदिशें थोपी जाती हैं, तो इससे अमरीका के साथ उसके संबंध प्रभावित हो सकते हैं। इसके अलावा कुछ ऐसा ही बयान अमरीका के उप-रक्षामंत्री जो फेलर की भी ओर से दिया गया है। फेलन ने कहा है कि उनको भारत की आशंकाओं की जानकारी है और वह आपसी संबंधों में किसी तरह की कमी नहीं चाहेंगे। बता दें कि रूस ने एस-400 ट्रिउम्फ वायु रक्षा मिसाइल की चीन को आपूर्ति शुरू कर दी है, लेकिन भारत को मल्टी बैरल सिस्टम के 40 से 400 किमी के रेंज वाली मिसाइल को बेचने के लिए चल रही बातचीत उन्नत चरण में है और इसमें कोई जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए। रणनीतिक उद्देश्यों के लिए सबसे ज्यादा आधुनिक उपकरण की आपूर्ति के लिए करीब 39,000 करोड़ रुपये की लागत आएगी।
2016 में हुई थी डील
इस सौदे पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के अक्टूबर 2016 में भारत के दौरे के समय हस्ताक्षर हुए थे। इस सौदे को अंतिम रूप देने से पहले बातचीत तकनीकी हस्तांतरण, अंतिम मूल्य व कर्मियों के प्रशिक्षण जैसे कारकों पर की जा रही है। भारतीय रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक, अनुबंध को अंतिम रूप दिए जाने के दो साल बाद मिसाइल प्रणाली की डिलिवरी शुरू हो जाएगी। भारत की शुरुआत में कम से कम 12एस-400 प्रणाली खरीदने की योजना थी, लेकिन इसे कम करके पांच कर दिया गया। सूत्रों ने कहा कि भारत डिलिवरी में तेजी लाने के लिए ऑफसेट क्लॉज में बदलाव लाने को तैयार है। इस क्लॉज के तहत अनुबंध मूल्य का 30 फीसदी देश में फिर से निवेश करने की जरूरत होती है।