
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए सीनियर एडवोकेट इंदू मल्होत्रा को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने के लिए सिफारिश की है। इस सिफारिश को अगर मान लिया जाता है तो वह ऐसी पहली महिला जज होंगी जिन्हें हाईकोर्ट की बजाय सीधे बार से चयनित किया जाएगा। इतिहास की बात करें तो फातिमा बीबी दशकों पहले 1989 में सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज नियुक्त हुई थी और तब से अब तक सिर्फ छह महिलाएं ही सुप्रीम कोर्ट में जज बन सकी हैं। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस वी. भानुमती इकलौती महिला जज हैं।
2007 में बनी थी दूसरी महिला सीनियर एडवोकेट
इंदु मल्होत्रा इससे पहले भी इतिहास रच चुकी हैं जब 2007 में सुप्रीम कोर्ट में दूसरी बार किसी महिला को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीनियर एडवोकेट के तौर पर रखा गया था। उनसे पहले लीला सेठ को सुप्रीम कोर्ट ने सीनियर एडवोकेट बनाया था जो बाद में किसी हाईकोर्ट की पहली महिला जज बनी।
सेव लाईफ फाउंडेशन एनजीओ की ट्रस्टी
मूलतः बंगलौर की इंदू मल्होत्रा वकीलों के परिवार से आती हैं। उनके पिता ओ. पी. मल्होत्रा एक सीनियर एडवोकेट थे और बड़ा भाई और बहन भी वकील हैं। इंदु ने राजनीति शास्त्र से मास्टर्स कर दिल्ली विश्वविद्यालय से लॉ किया है। इसके बाद 1983 से लॉ कैरियर की शुरूआत की। उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं। इंदु मल्होत्रा एक एनजीओ सेव लाईफ फाउंडेशन की ट्रस्टी भी हैं जो रोड एक्सीडेंट में घायल लोगों की मदद से जुड़े मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में ले गई थी।
जजशिप और एडवोकेसी एक ही सिक्के के दो पहलू
एक पत्रिका को इंटरव्यू देते हुए उन्होंने जजशिप और एडवोकेसी को एक ही सिक्के के दो पहलू बताया था। उन्होंने अपने इंटरव्यू में दोनों की तुलना करने को गलत बताते हुए कहा कि जजशिप और एडवोकेसी दोनों की चुनौतियां अलग हैं। इंदू मल्होत्रा के मुताबिक एक एडवोकेट के लिए हर केस एक चुनौती होता है और उसे अपने केस को कोर्ट के सामने बेहतरीन तरीके से पेश करना होता है। उन्होंने बताया कि वकील और जज दोनों को ही बहुत मेहनत करनी होती है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के जज को एक ही दिन में 60-70 फाईल्स पढ़नी पड़ती हैं जबकि वकील एक दिन में 10-15 मामले ही देख पाता है। उनके मुताबिक एक जज को शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत मजबूत होना पड़ता है।
Published on:
13 Jan 2018 07:29 pm
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