पीएसएलवी-सी44 के साथ होगी लॉन्चिंग
इसरो के अध्यक्ष के. शिवन ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि ये यह दुनिया का सबसे छोटा सैटेलाइट है। इसे चेन्नई के छात्रों के समूह स्पेस किड्स ने तैयार किया है। पीएसएलवी-सी44 मिशन में इसके अलावा माइक्रोसैट-आर सैटेलाइट की भी लॉन्चिंग की जाएगी। यह पीएसएलवी के नए संस्करण पीएसएलवी-डीएल का पहला सैटेलाइट भी होगा।
पहली बार छात्रों द्वारा बनाए गए सैटेलाइट की होगी लॉन्चिंग
शिवन ने बताया कि इसरो ने हर सैटेलाइट लॉन्चिंग मिशन में पीएस-4 प्लेटफॉर्म को छात्रों के बनाए सैटेलाइट के लिए इस्तेमाल करने का फैसला किया है। कलामसैट पीएस-4 प्लेटफॉर्म पर अंतरिक्ष में स्थापित पहला सैटेलाइट होगा। यह इतना छोटा है कि ‘फेम्टो’ श्रेणी में आता है। पीएस-4 लॉन्चिंग पैड का वह हिस्सा है जिसमें चौथे चरण का फ्यूल भरा जाता है। यह सैटेलाइट को उसकी कक्षा में स्थापित होने के बाद अंतरिक्ष में कबाड़ के रूप में रह जाता है। उन्होंने कहा कि इसमें ऊर्जा स्त्रोत के रूप में एक सौर पैनल लगाकर इसे छह महीने से साल भर तक सक्रिय रखेगा। हम छात्रों से पूरा उपग्रह बनाने की जगह सिर्फ पे-लोड बनाकर लाने की बात कह रहे हैं। हम उनके पे-लाड को सीधे पीएस-4 में फिट कर उसे अंतरिक्ष में भेज देंगे।
एक मिशन में भेजे जाएंगे 100 से ज्यादा सैटेलाइट
इसरो प्रमुख ने बताया कि अब तक इस योजना के तहत सात आवेदन आए हैं। उन्होंने बताया कि एक मिशन में सौ से भी ज्यादा छोटे सैटेलाइट भेजे जा सकते हैं। इसलिए इसरो चाहता है कि अधिक से अधिक छात्र उपग्रह सैटेलाइट लाएं। हम सभी सैटेलाइट को लॉन्च करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष 2019 में कुल 32 मिशनों को अंजाम दिया जाएगा। इनमें 14 सैटेलाइट मिशन, 17 उपग्रह मिशन और एक डेमोमिशन होगा।