
अशफाक और बिस्मिल की दोस्ती से अंग्रेज हो गए थे बर्बाद, जब काकोरी कांड से दहल उठा हिंदुस्तान
नई दिल्ली। फिल्म 'शोले' का नाम आते ही 'जय-वीरू' की दोस्ती सबसे पहले दिमाग में आती है। ये दोनों सिर्फ दोस्त नहीं बल्कि फिल्म में एक शातिर चोर की भूमिका निभाते देखे गए है जो अपनी गहरी दोस्ती के बलबूते बड़ी-बड़ी चोरियों को अंजाम देते है। लेकिन क्या कभी असल जिंदगी में 'जय-वीरू' की भूमिका निभाने वाले किरदार के बारे में जाना है, अगर नहीं... तो चलिए आज हम आपको एक ऐसे ही किरदार के बारे में बताते हैं जो पक्के दोस्त होने के साथ-साथ शातिर चोर भी थे, लेकिन इनकी चोरी अपने स्वार्थ के लिए नहीं बल्कि अंग्रेजों से देश को बचाने के लिए की गयी थी।
काकोरी कांड से बौखला गए अंग्रेज
असल जिंदगी के 'जय-वीरू' और कोई नहीं बल्कि भारत मां के दुलारे अशफाक उल्ला खां और राम प्रसाद बिस्मिल ही हैं, जिन्होंने माना था कि हथियार के दम पर ही भारत को अंग्रेजों के चंगुल से छुड़ाया जा सकता है और इसी मकसद से इन दोनों ने काकोरी स्टेशन पर सरकारी खजाने को लूटने की योजना बनाई और उसे अंजाम दिया। इसमें सबसे अहम अशफाक उल्ला खां ने निभाई थी। इनका जन्म 22 अक्टूबर 1900 को शाहजहांपुर में हुआ था और इनके चार भाई थे, जिसमें से एक बड़े भाई शायरी किया करते थे और अपने शायरी में अक्सर अपने साथ में पढ़ने वाले राम प्रसाद बिस्मिल का जिक्र किया करते थे। बिस्मिल, के किस्से सुनकर अशफाक उल्ला खां उनके दिवाने हो गए।
बिस्मिल के दिवाने अशफाक ने एकसाथ किया कमाल
अशफाक उल्ला खां सिर्फ दिवाने ही नहीं थे बल्कि राम प्रसाद बिस्मिल के साथ मिलकर अंग्रेजों से भारत को मुक्त कराने का भी सपना देखने लगे, लेकिन उनकी मुलाकात बिस्मिल से मिल नहीं हो पा रही थी कि वो उसके साथ मिलकर देश के लिए कुछ कर पाए। अशफाक उल्ला खां की उम्मीदें टूटती उससे पहले ही उनकी बिस्मिल से मुलाकात हो गई वो भी उन्हीं के शहर शाहजहांपुर में। इसके साथ ही मिलना-जुलना शुरू हुआ और एक दिवाना पक्का दोस्त बन गया, जो हर वक्त बिस्मिल के साथ रहता और देश को आजाद कराने के ख्वाब देखते रहते।
एक साथ लूटी ट्रेन और साथ ली फांसी पर लटके
देश को आजाद कराने के लिए इन दोनों दोस्तों ने काकोरी ट्रेन में डकैती की। इसकी तैयारी 8 अगस्त,1925 को शाहजहांपुर में बनायी गयी और 9 अगस्त,1925 को बिस्मिल और अशफाक के साथ 8 अन्य लोगों ने मिलकर ट्रेन लूट ली। इसमें राजेंद्र लाहिड़ी,सचींद्र नाथ बख्शी, चंद्रशेखर आजाद, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुकुंद लाल, मन्मथ नाथ गुप्त और मुरारी लाल शामिल थे। हालांकि ब्रिटिश कोर्ट ने अशफाक, बिस्मिल, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह को ही मुख्य आरोपी माना और चारों को 5-5 साल की सजा व फांसी की सजा सुना दी। जब मौत का फरमान उन्हें सुनाया जा रहा था तो उससे मायूस नहीं बल्कि खुश थे। ये फांसी उम्र कैद में बदल सकती थी, लेकिन वो लोग चाहते थे कि उन्हें फांसी ही दी जाए। आखिरकार 19 दिसम्बर को 1927 को चारों को एकसाथ फांसी दे दी गई।
Updated on:
26 Dec 2018 09:21 pm
Published on:
19 Dec 2018 08:21 pm
बड़ी खबरें
View Allविविध भारत
ट्रेंडिंग
