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Lady Justice Statue History:जानिए न्याय की देवी के बारे में अनोखे तथ्य

Lady Justice Statue History:क्या आप जानते हैं न्याय की देवी का इतिहास। या कभी सोचा है कि उनके हाथ में तराजू और आखों पर पट्टी क्यों है।
 

नई दिल्लीAug 21, 2021 / 07:47 pm

Ashwin Sharma

lady justice statue history

नई दिल्ली।Lady Justice Statue History: क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे न्याय की देवी कोने है? उनकी आखों पर पट्टी और हाथ में तराजू क्यों है? कभी ना कभी नहीं ना कहीं आप सब ने कानून की देवी तो देखी ही होगी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वो हमारे देश के न्याय तक कैसे पहुची या हमारे न्याय संविधान ने उन्हें ही क्यों स्वीकार किया।
इस मू्र्ति के पीछे कई पौराणक अवधारणाएं बताई जाती हैं। कहा जाता है कि यह यूनानी देवी डिकी पर आधारित है, जो ज्यूस की बेटी थीं और हमेशा इंसानों के लिए न्याय करती थीं, उनके चरित्र को दर्शाने के लिए डिकी के हाथ में तराज़ू दिया गया। इसके अलावा वैदिक संस्कृति की बात करें तो उसके आधार पर ज्यूस या घोस का मतलब रौशनी और ज्ञान का देवता यानि ब्रहस्पति कहा गया, जिनका रोमन पर्याय जस्टिशिया देवी थीं, जिनकी आंखों में पट्टी बंधी थी।
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न्याय को तराज़ू से जोड़ने का विचार मिस्र की पौराणिक कथाओं से निकला है, क्योंकि तराज़ू हर चीज़ का भार सही बताता है उसी तरह से न्याय भी होना चाहिए। मान्यता है कि स्वर्गदूत माइकल यानि एक फ़रिश्ता जिसके हाथ में तराज़ू है, वो इंसान के पाप पुण्य को तराजू में तोलकर फैसला लेते हैं। इसके अलावा आंखों पर काली पट्टी इसलिए है कि जैसे सब भगवान की नज़र में समान हैं वैसे ही क़ानून की नज़र में भी सब समान हैं। कोई कानून के सामने बड़ा छोटा नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने की पुष्टि

पौराणिक अवधारणाओं से हटकर न्याय व्यवस्था में न्याय की देवी के बारे में कोई जानकरी नहीं है। इसकी पुष्टि ख़ुद सुप्रीम कोर्ट ने की है। RTI कार्यकर्ता दानिश ख़ान ने RTI यानि सूचनाधिकार के तहत जब राष्ट्रपति के सूचना अधिकारी से इसके बारे में जानकारी लेनी चाही तो, सुप्रीम कोर्ट की तरफ़ से कोई ठोस जानकारी नहीं मिली।
इसके बाद दानिश ख़ान ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार को पत्र लिख कर ‘न्याय की देवी’ के बारे में पूछा तो उन्होंने जवाब में कहा कि इंसाफ़ का तराज़ू लिए और आंखों पर काली पट्टी बांधे देवी के बारे में कोई लिखित जानकारी नहीं है। RTI के जवाब में ये भी कहा गया कि संविधान में भी न्याय के इस प्रतीक चिह्न के बारे में कोई जानकारी दर्ज नहीं है। इसके अलावा इस बात को ख़ुद वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के जरिए मुख्य सूचना आयुक्त राधा कृष्ण माथुर ने दानिश ख़ान को बताया और कहा कि ऐसी किसी तरह की लिखित जानकारी नहीं है।

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