
नई दिल्ली। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को कथित तौर पर एक पत्र लिखा है। इस पत्र में कहा गया है कि कर्नाटक के एक जिला जज के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत से संबंधित मामले में देश की शीर्ष अदालत द्वारा तय दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस पत्र पर शीर्ष अदालत ने गंभीरता से संज्ञान लिया है। जानकारी के मुताबिक केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस मामले में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को पत्र लिखा, जिसमें कर्नाटक जिला अदालत के न्यायाधीश की हाईकोर्ट में पदोन्नति को लेकर सवाल उठाए गए हैं।
न्यायमूर्ति चेलमेश्वर के आरोपों का खंडन
कानून मंत्री के पत्र में इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज चेलमेश्वर के आरोपों का खंडन भी किया गया है। बताया जाता है कि केंद्र सरकार की ओर से चीफ जस्टिस को इस संबंध में तीन पन्नों का पत्र पिछले सप्ताह लिखा गया। केंद्र सरकार की ओर से यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है, जबकि कुछ दिनों पहले ही जस्टिस जे चेलमेश्वर ने चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर कहा था कि सरकार पीके भट्ट की नियुक्ति में अवधरोध पैदा कर रही है, जबकि कर्नाटक हाईकोर्ट की आतंरिक कमेटी ने उन्हें इस मामले में दोषी नहीं पाया। बताया जाता है कि पत्र पर 21 मार्च की तिथि में हस्ताक्षर हैं और इसमें जस्टिस चेलमेश्वर को दावे को खारिज करते हुए कहा गया है कि भट्ट के मामले में उचित जांच नहीं हुई। जस्टिस चेलमेश्वर सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ न्यायाधीश हैं। उन्होंने पिछले दिनों चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर न्यायपालिका के कामकाज में कथित सरकारी दखल का मुद्दा उठाया था।
दो मौकों पर हुई अनदेखी
इससे पहले केंद्र सरकार ने आरोप लगाया था कि कर्नाटक हाईकोर्ट के जज के तौर पर भट्ट की पदोन्नति के सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम ने उनके खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत की दो मौकों पर अनदेखी की। एक महिला न्यायिक अधिकारी ने भट्ट के खिलाफ आरोप लगाए हैं। जानकारी के मुताबिक कानून मंत्री ने जस्टिस चेलमेश्वर के इस आरोप को भी नकार दिया कि सरकार नियुक्तियों के सिलसिले में न्यायपालिका की अनुशंसाओं को बाधित कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार भट्ट की पदोन्नति को लेकर कॉलेजियम की अनुशंसाओं पर निर्णय लेने को लेकर किसी भी तरह की जल्दबाजी में नहीं है।
Published on:
10 Apr 2018 09:40 am
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