अमरीकी इंस्टीट्यूट फॉर फैमिली स्टडीज (आइएफएस) ने इस ओर दुनिया का ध्यान दिलाने का प्रयास किया है। मई व जुलाई के बीच हुए सर्वे में 1523 उच्च माध्यमिक स्कूलों के छात्रों को शामिल किया। अक्टूबर में रिपोर्ट जारी की गई। लॉकडाउन के बाद किशोरों के दिनचर्या में जो बदलाव हुआ, उसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले। चौंकाने वाली बात है कि किशोरों में दर्ज किए अवसाद के मामले 2018 में 27 फीसदी थे, वह 2020 के बसंत तक घटकर 17 फीसदी रह गए.
क्या हैं किशोरों की समस्याएं किशोर शारिरिक बदलाव के कारण ज्यादा थकान महसूस करते हैं। स्कूल के लिए जल्दी उठने से उनकी नींद में खलल पैदा होता है। जब वह कम सक्रिय होते हैं, दोस्तों से ज्यादा संपर्क में हैं, तब वह परेशान व असंतुष्ट महसूस करते हैं। उन्हें परिवार की जरूरत होती है।
किस तरह लॉकडाउन ने किया अच्छा काम लॉकडाउन में माता-पिता की उपस्थिति ने किशोरों को सहज महसूस कराया। समस्या को सुलझाया। पुरानी रिसर्च में नींद की कमी व अवासदग्रस्त होना सामने आया था। लॉकडाउन में किशोर अच्छी व सेहतमंद नींद पा सके। परिवार के साथ समय बिता, अच्छी नींद, पढ़ाई के कम प्रेशर से ना वह केवल अवसाद मुक्त होते है बल्कि सृजनात्मकता बढ़ती है।