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लॉकडाउन का कृषि पर बड़ा असर, आधे से ज्यादा किसान नहीं कर पा रहे अगले सीजन की बुआई!

Highlights देश की तीन बड़ी संस्थाओं ने 12 राज्यों के किसानों पर किया अध्ययन लॉकडाउन के दौरान बुरी तरह से प्रभावित हुई कृषि अगले सीजन की बुआई की चिंता में है देश का किसान

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कोरोना (Coronavirus) की रोकथाम के लिए देश में लागू लॉकडाउन (Lockdown) का जहां अन्य कामों पर असर पड़ा है, वहीं देश के कृषि (Agriculture) क्षेत्र को भी बुरी तरह से प्रभावित किया है। भारतीय किसानों पर किए गए एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि लॉकडाउन के डर से आधे से ज्यादा किसान अगले सीजन की बुआई तक नहीं कर पा हरे हैं।

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12 राज्यों के किसानों पर किया गया अध्ययन

देश में 12 राज्यों के एक हजार से ज्यादा किसान परिवारों पर किए गए एक सर्वेक्षण में 60 फीसदी किसानों ने पैदावार में कमी की बात स्वीकारी है। जबकि 10 में से 1 ने यह बात कही है कि वे पिछले महीने फसल की कटाई ही नहीं कर पाया। इनमें से आधे से ज्यादा (56%) का कहना है कि वे लॉकडाउन के कारण अगली बुआई के लिए भी खुद को तैयार नहीं कर पा रहे हैं। इस सर्वे में यह भी सामने आया है कि खाद्य असुरक्षा और खेत के आकार का आपस में गहरा नाता है। भूमिहीन किसानों में किसानों की तुलना में पिछले महीने भोजन छोड़ने की 10 गुना अधिक संभावना दिखाई दी।

कृषि श्रमिकों (agriculture labour) की कमी से चिंतित किसान

सर्वे में आधे से ज्यादा किसानों का कहना है कि वे निवेश, विशेष रूप से बीज और उर्वरक को वहन करने में सक्षम होने के बारे में चिंतित हैं, जबकि एक तिहाई (38%) से अधिक श्रम की कमी के बारे में चिंतित थे। इनमें से एक चौथाई का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान उन्होंने अपनी फसल बेचने के बजाय उसके भंडारन पर ध्यान दिया। अध्ययन में पाया गया है कि छोटे / सीमांत किसान बड़े किसानों की तुलना में अपनी फसल बेचने में सक्षम नहीं।

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तीन संस्थाओं ने मिलकर किया सर्वेक्षण

दि पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (PHFI), हार्वर्ड टीएच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ और सेंटर फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर (CSA,Hyderabad)ने हाल ही में 200 राज्यों के 1429 किसान घरानों पर टेलिफोनिक सर्वे किया है। यह सर्वे 3 से 15 मई के बीच किया गया। ऐसा ही सर्वे एक महीने और फिर दो महीने बाद भी किया जाएगा।

'प्रारंभिक नतीजे चिंताजनक, लेकिन उम्मीद की किरण बाकी'

हार्वर्ड टीएच चेन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के असिस्टेंट प्रोफेसर और इस सर्वे टीम के सदस्य डॉ. लिंडसे जैक्स के अनुसार- सर्वे के प्रारंभिक नतीजे भले ही चिंताजनक रहे, लेकिन ज्यादातर लोगों में आशा की किरण जगी, जब कुछ लोग ऐसी नीतियों के समर्थन में आए, जिनसे किसानों और खेत-श्रमिकों को लाभ पहुंच सकता है। डॉ. जैक्स के अनुसार- अकादमिक शोध की प्रक्रिया धीमी होती है और इसके पॉलिसी मेर्क्स के हाथों और खेतिहरों का स्तर सुधारने में लगी गैर सरकारी संस्थाओं के पास जाकर लागू होने की प्रक्रिया भी धीमी होती है। वे कहते हैं लेकिन कोरोना महामारी ने इतना तो साबित किया है कि संकट की घड़ी में साझा उद्देश्यों पर लगे लोगों की क्षमता बढ़ जाती है।

सर्वे की महत्वपूर्ण बातें

- 10 फीसदी किसान पिछले महीने अपनी फसल नहीं काट पाए। जिन लोगों ने फसल की कटाई की उनमें से 60 फीसदी ने फसल की पैदावार कम होने की बात कही। ज्यादातर ने कहा- यह नुकसान लॉकडाउन के कारण हुआ। इसमें कम बाजार मूल्य, आवाजाही पर रोक के कारण खेत तक ना जा पाना, सिंचाई ना कर पाने के कारण भी फसल की पैदावार प्रभावित हुई। दूसरा, महामारी संकट के दौरान ही मौसम में बदलाव और गर्मी का बढ़ना भी है।

- 4 में से 1 किसान का कहना है कि लॉकडाउन के कारण उन्होंने फसल बेचने की जगह उसे भंडार करने पर ध्यान दिया। इनमें से 12 फीसदी अभी भी फसल बेचने का प्रयास कर रहे हैं। बड़े किसानों की तुलना में छोटे/सीमांत किसान अपनी फसल बेचने में सक्षम नहीं हैं।

- 56 फीसदी किसानों ने कहा कि उन्हें यह नहीं पता कि लॉकडाउन के कारण वे अगले सीजन की बुआई कर पाएंगे या नहीं। इनमें से 50 फीसदी का कहना है कि उन्हें कृषि में निवेश के रूप में बीज और खादों का खर्च वहन करने में सक्षम होने की चिंता है। जबकि 38% श्रम की कमी के बारे में चिंतित हैं।


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