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Covid distress: प्रवासी मजदूरों के मामले पर खुद संज्ञान ले रहे राज्यों के हाई कोर्ट

locationनई दिल्लीPublished: May 22, 2020 01:23:59 pm

Submitted by:

Navyavesh Navrahi

Highlights

लॉकडाउन (Lockdown) के कारण प्रवासी मजदूरों की हालत हुई दयनीय
उच्च न्यायालों (High Court) ने खुद संज्ञान लेकर राज्य सरकारों को दिए निर्देश
प्रवासी मजदूरों (Migrant Workers) के मुद्दे पर कई लोगों ने जनहित याचिकाएं भी की दाखिल

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कोरोना संकट के कारण पूरे देश में हुए लॉकडाउन (Lockdown)लागू है। इसके चौथे चरण में कुछ कामों को छूट दी गई है। लॉकडाउन से सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर (Migrant Workers) प्रभावित हुए हैं। काम-धंधे बंद होने और खाने-पीने का सामान खत्म होने पर परिस्थितियों से मजबूर होकर जब ये मजदूर सड़कों पर पैदल घरों की तरफ जाने लगे, तब सरकारों को उनकी घर वापसी की सुध आई। श्रमिक ट्रेनें चलाई गईं। लॉकडाउन के कारण वे ट्रेनों तक पहुंचेंगे कैसे, इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। मजदूरों की ऐसी दयनीय हालत पर कई राज्यों के उच्च न्यायालयों (High Court) ने केंद्र और राज्य सरकारों पर सवाल उठाए हैं।
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मद्रास हाई कोर्ट ने पूछे 12 सवाल

इनमें मद्रास से आंध्र प्रदेश और कर्नाटक से गुजरात तक के उच्च न्यायाल्य शामिल हैं। 15 मई को महाराष्ट्र के बॉर्डर पर पहुंचे 400 प्रवासी मजदूरों की सुरक्षित घर वापसी के लिए दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) की डिविजन बैंच ने राज्य और केंद्र सरकार से 12 सवाल पूछे कि लॉकडाउन के कारण पैदा हुए इस संकट से निपटने के लिए सरकार ने क्या किया?
‘सरकार ने क्या कदम उठाए?’

कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि- प्रवासी मजदूरों की पिछले एक महीने से ऐसी दयनीय स्थिति देखकर कोई अपने आंसू नहीं रोक पाएगा। यह एक मानवीय दुखांत है। बैंच ने सवाल पूछा है कि- इस संकट के कारण कितने प्रवासी मजदूर फंसे हुए हैं और कितने हाईवे पर पैदल चल रहे हैं और उन्हें सुरक्षित घरों तक पहुंचाने के लिए अभी तक सरकार ने क्या कदम उठाए हैं?
इसी दिन आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट (Andhra Pradesh High Court) ने भी राज्य में फंसे प्रवासी मजदूरों के मामले का संज्ञान लेने के लिए दायर एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई के दौरान कहा कि- सरकार अपने कर्त्तव्य पालन में पूरी तरह फेल होगी, अगर वे प्रवासी मजदूरों की दशा पर कोई ठोस कदम नहीं उठाती। अदालत ने राज्य सरकार को प्रवासी मजदूरों के लिए खाने-पीने, यात्रा और रहने की तुरंत व्यवस्था करने के निर्देश दिए।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा- राज्य दें ध्यान

लेकिन इसी दिन सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Of India) ने प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग करने वाली जनहित याचिका की सुनवाई से इनकार कर दिया। तीन जजों पर आधारित पीठ की अध्यक्षता कर रहे जज नागेश्वर राव ने इस पर कहा कि- लोग सड़कों पर चले जा रहे हैं। रुक ही नहीं रहे। हम उन्हें कैसे रोक सकते हैं? सर्वोच्च अदालत ने कहा कि इस परिस्थिति पर राज्यों को ध्यान देना होगा। लॉकडाउन के कारण काम चालू ना होने के बावजूद हाई कोर्ट मजदूरों के प्रति अपनाए गए सरकारों के रवैये पर सवाल उठा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने एक इंटरव्यू में कहा था कि संबंधित राज्य सरकारें इस स्थिति का कोई हल निकाल सकती हैं।
उच्च न्यायालयों ने राज्य सरकारों को दिए निर्देश

इसी सप्ताह महाराष्ट्र हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि निजी सुरक्षा उपकरण (PPE) फ्रंटलाइन पर लगे लोगों तक जरूर पहुंचे। जबकि मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को निर्देश दिए हैं कि वे प्रवासी मजदूरों को रेलवे स्टेशनों तक पहुंचाना सुनिश्चित करे। इस पर अदालत ने स्टेटस रिपोर्ट भी मांगी है। उधर, कलकत्ता हाई कोर्ट ने वेस्ट बंगाल सरकर से पूछा है कि सरकार ने इस संकट की घड़ी से निपटने के लिए क्या कदम उठाए हैं।
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मजदूरों से किराया वसूलने पर राजनीति!

सरकार ने प्रवासी मजदूरों को श्रमिक स्पेशल ट्रेनों के माध्यम से घर भेजने की शुरुआत की, तो इस पर भी राजनीति होने लगी। पहले से ही परेशानियों से जूझ रहे मजदूरों से रेल का किराया तक वसूला गया। यह मामला कर्नाटक हाई कोर्ट में है। मामले की सुनवाई कर रही बैंच की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस अभय ओका ने 18 मई को राज्य सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है कि आखिर मजदूरों के लिए किराया कौन दे रहा है?
हाई कोर्ट ने ठुकराई सरकार की दलील

इस पर केंद्र सरकार ने कहा कि कुछ राज्य मजदूरों का किराया देने पर सहमत हैं। जिन राज्यों ने सहमति नहीं जताई, वहां के मजदूरों को यह किराया खुद वहन करना होगा। अदालत सरकार की इस दलील से संतुष्ट नहीं हुई। अदालत ने टिप्पणी की कि किसी मजदूर से किराया लेना और किसी से ना लेना समानता की अवधारणा का उल्लंघन है। अगर किन्हीं मजदूरों से संबंधित राज्य यह किराया नहीं दे रहे, तो इसका मतलब यह नहीं कि किराया मजदूर से ले लिया जाए।
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उच्च न्यायालयों ने खुद लिया संज्ञान

5 मई को, सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका में इस मुद्दे पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया जिसमें कहा गया था कि शीर्ष अदालत को यह तय नहीं करना है कि रेल किराया कौन अदा करता है। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि इस पर संबंधित राज्य या रेलवे को दिशानिर्देशों के अनुसार उचित कदम उठाने चाहिएं। हालांकि प्रवासी मजदूरों के मुद्दे पर ज्यादातर जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं। इसके बावजूद कुछ महत्वपूर्ण मामलों में हाई कोर्ट ने खुद संज्ञान लिया है। 20 मई को बॉम्बे हाई कोर्ट की ओरंगाबाद बैंच ने अखबारों के वितरण के मामले का संज्ञान लिया। जबकि गुजरात हाई कोर्ट ने प्राइवेट अस्पतालों की ओर से कोरोना मरीजों से वसूली जा रही मनमानी फीस पर खुद संज्ञान लिया।
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