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मद्रास हाईकोर्ट: यौन उत्पीड़न साबित करने के लिए शरीर पर चोट के निशान जरूरी नहीं, लगाई फटकार

इस मामले में वकील का तर्क अपमानजनक शरीर पर चोट का होना जरूरी नहीं निचली अदालत के फैसला को रखा बरकरार

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नई दिल्‍ली। मद्रास उच्‍च न्‍यायालय के न्‍यायाधीश एस वैद्यनाथन ने अधिवक्‍ताओं की इस दलील को खारिज कर दिया कि किसी भी शारीरिक हिंसा को साबित करने के लिए चोट का निशान सा‍बित करना जरूरी है। चोट का निशान न होने पर भी यह नहीं कहा जा सकता है कि पीड़िता यौन उत्पीड़न का शिकार नहीं हुई।

ये बात मद्रास हाईकोर्ट ने वकीलों द्वारा कथित रूप से यौन दुर्व्यवहार के पीड़ित नाबालिग के शरीर पर चोट के निशान न होने पर शिकायत को खारिज करने की मांग पर कही।

न्‍यायाधीश एस वैद्यनाथन ने कहा कि चोट के निशान नहे पर ये नहीं कहा जा सकता है कि पीडि़ता के साथ कोई अपराध नहीं हुआ है।

मद्रसा हाईकोर्ट ने निचली अदालत के एक आदेश को बरकरार रखते हुए यह बात कही। बता दें कि निचली अदालत ने इस मामले में एक व्यक्ति को IPC के तहत 10 साल के सश्रम कारावास और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम 2012 ( पोस्‍को ) के तहत सात साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी।

न्‍यायाधीश एस वैद्यनाथन ने आरोपी के वकील के इस तर्क को खारिज कर दिया कि किसी भी शारीरिक हिंसा की स्थिति में जो व्यक्ति हिंसा का शिकार हुआ है, उसे शारीरिक चोट लगी होगी, जिसके अभाव में ये नहीं कहा जा सकता है कि पीड़ित का यौन उत्पीड़न हुआ।

वकील का तर्क अपमानजनक

न्‍यायाधीश एस बद्यनाथन ने कहा कि यह आरोपियों के वकील द्वारा दिया गया एक बेहद अपमानजनक तर्क है क्योंकि नाबालिग लड़की को यह भी नहीं पता था कि उसे क्यों खींचा जा रहा है और क्यों छुआ गया। उन्होंने इसलिए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि नाबालिग लड़की कोई विरोध नहीं कर सकती है और किसी भी तरह के विरोध के अभाव में स्वाभाविक रूप से शरीर पर चोट लगने की कोई गुंजाइश नहीं है।

इस मामले में पीड़ित लड़की की मां ने 27 मई, 2016 को शिकायत दर्ज कराई थी कि आरोपी प्रकाश ने 12 साल की लड़की को जबरन अपने घर ले गया और उसके साथ यौन दुर्व्यवहार किया।